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यशस्तिलककालीन सामाजिक जीवन
११३ में दाह होता है तथा काषाय पदार्थ अधिक मात्रा में खाने से पित्त कुपित होता है ।२५ __ भोजन के तत्काल बाद काम, कोप, आतप, आयास, यान, वाहन तथा अग्नि का सेवन नहीं करना चाहिए । २६
रात्रिशयन या निद्रा-स्वास्थ्य के लिए पर्याप्त नींद लेना आवश्यक है। सुख की नोंद सोकर जागने पर मन और इन्द्रियाँ प्रसन्न हो जाती हैं, पेट हलका हो जाता है तथा पाचन क्रिया ठीक रहती है ।२७ जिस तरह खुली स्थाली (बटलोई) में अन्न ठीक से नहीं पकता उसी प्रकार नींद लिए बिना सम्यक पाचन नहीं होता । २८ अच्छी नींद लेने से श्रम भी दूर हो जाता है (निद्राविद्राणितश्रमः, ५०८)।
नीहार या मलमूत्र विसर्जन-शौच तथा लघुशंका को बाधा होने पर उसकी निवृत्ति शीघ्र कर लेना चाहिए । प्रवाह के वेग को रोकने से भगन्दर हो जाता है।२९
अभ्यंग तथा उद्वर्तन-तेल-मालिश के लिए प्राचीन शब्द अभ्यंग था। अभ्यंग श्रम तथा वायु को दूर करता है, शक्ति का सञ्चार करता है तथा शरीर को दृढ़ (मजबूत) बनाता है ।३० उद्वर्तन या उबटन शरीर में कान्ति लाता है, चर्बी, कफ तथा आलस को दूर करता है।"
२५ पृ० ११७, श्लोक ३६४-६५ २६. पृ० ११७, श्लोक ३७३ २७. अधिगतसुखनिद्रः सुप्रसन्नेन्द्रियात्मा, सुलघुजठरवृत्तिभुक्तपंक्ति दधानः ।
-पृ. ५०७ २८. स्थाल्यां यथानावरणाननायामघट्टितायां च न साधुपाकः ।
अनाप्तनिद्रस्य तथा नरेन्द्र व्यायामहीनस्य च नानपाकः ।।-वहीं २६. भगन्दरी स्यन्दविबन्धकाले ।-पृ०५०६ ३०. अभ्यंगः श्रमवातह: बलकर: कायस्य दाावहः ।-पृ० १०८ तुलना-अभ्यंगो वातकफहृच्छ मशान्तिबलं सुखम् । निद्रावर्णमृदुत्वायुष्कुरुते देहपुष्टिकृत् ॥
-भाव प्र० भा०३, पृ० १११, श्लो० ६८ ३१. स्यादुद्वर्तनमंगकान्तिकरणं मेदः कफालस्यजित् ।-पृ० १०८ तुलना-उद्वर्तनं कफहरं मेदोन्नं शुक्रदं परम् ।
बल्यं शोणित्कृच्चापि त्वक्प्रासादमृदुत्वकृत् ।।-वही, पृ० ११६७९
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