________________
११२
यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन
अत्यशन, लघ्वशन, समशन तथा अध्यशन नहीं करना चाहिए । प्रत्युत बल और जीवन प्रदान करने वाला उचित भोजन करे।
अत्यशन-भूख से अधिक खाना लघ्वशन-भूख से कम खाना समशन-पथ्य तथा अपथ्य दोनों खाना
अध्यशन-अजीर्ण होने पर भी खाना इन सबका त्याग करे। १९
भोजन करने की विधि-भोजन में स्वादु (मधुर) तथा स्निग्ध पदार्थ प्रारम्भ में, भारी, नमकीन तथा अम्ल (खट्टा) मध्य में, रुक्ष और द्रव पदार्थ बाद (अन्त) में खाना चाहिए । खाने के तुरन्त बाद कुछ भी नहीं खाना चाहिए ।२० ___ छोटा बैंगन, कोहल (कुम्हड़ा), कारवेल (करेला), चिल्ली, जीवन्ती (डोडी), वास्तूल, तण्डुलीय (चौलाई), तुरन्त सेंका गया पापड़, ये खाद्य सामग्री के अङ्ग हैं, यदि अदरख की फांकें मिल जाएँ तब तो कहना ही क्या ।"
भोजन में सर्वदा चतुर्थांश साग-सब्जी खाना चाहिए। दही में तैरते हुए (दध्ना परिप्लुतं) तथा तले हुए (पयसा विशुष्क) पदार्थ नहीं खाना चाहिए । २२ बिना उबाला गया दूध दस घड़ी तक तथा उबाला गया बीस घड़ी तक पथ्य है। दही जब तक उज्ज्वल सुगन्धित तथा रसयुक्त (रूपामोदरसाढ्यं) हो, तभी तक भोज्य है । २३ सोमदेव कहते हैं कि पकवान तभी तक स्वादयुक्त लगते हैं जब तक अंगारों पर सेंके गये घृत-स्नात (सपिषि स्नाताः) गरमागरम पदार्थ नहीं खाये जाते ।२४
ज्यादा मीठा खाने से मन्दाग्नि हो जाती है, अधिक नमकीन खाने से दृष्टिमान्य हो जाता है तथा अधिक खटाई और तीक्ष्ण पदार्थ शरीर को जीणं कर देते हैं । अधिक उष्ण पदार्थ (सोंठ, पीपल, मिरिच आदि) ज्यादा खाने से शरीर
१६. पृ०११३ श्लोक ३४५ २०. पृ. वही, श्लोक ३४६ २१.१०५५६, श्लोक ३५६ २२. पृ०५१६, श्लोक ३५७ २३. पृ०१७, श्लोक ३५८ २४. पृ०५१७ श्लोक ३५१
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org