________________
११०
यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन
वर्षा
पुराने चावल, जौ तथा गेहूँ के बने पदार्थ । शरद
घृत, मूग, शालि, लप्सी, दूध के बने पदार्थ (खीर आदि), परवल, दाख (अंगूर), आँवला, ठंडी छाया, मधुर रस
वाले पदार्थ, कन्द, कोंपल, रात्रि में चन्द्रकिरणं ।। उपर्युक्त विवेचन के बाद सोमदेव ने कहा है कि ऋतुओं के अनुसार रसों को कम ज्यादा मात्रा में उपयोग में लाना चाहिए। वैसे छह रसों का व्यवहार सर्वदा सुखकर होता है ।
भोजन-पान के सम्बन्ध में अन्य जानकारी भोजन का समय-भोजन के समय के विषय में सोमदेव ने लिखा है कि चारायण के अनुसार रात्रि में भोजन करना चाहिए, निमि के अनुसार सूर्यास्त होने पर, धिषण के अनुसार दोपहर को तथा चरक के अनुसार प्रातःकाल, किन्तु मेरे विचार से तो भोजन का समय वही है जब भूख लगी हो। भूख के बिना ही जो लालचवश आकंठ भोजन करता है, वह व्याधियों को सोये हुए सर्यों की तरह जगाता है।
कुछ लोगों का कहना है कि जो चक्रवाक पक्षी की तरह दिन में मैथुन करते हैं वे रात्रि में भोजन कर सकते हैं, किन्तु जो चकोर की तरह रात्रि में रमण करते हैं उन्हें दिन में भोजन करना चाहिए।
रात्रि में भोजन का निषेध करने वाले कुछ लोगों का कहना है कि सूर्य के चले जाने से हृदय कमल तथा नाभिकमल बन्द हो जाते हैं, इसलिए रात्रि में नहीं खाना चाहिए ।
विशेष-देवपूजा, भोजन तथा शयन खुले आकाश में, अन्धेरे में, संध्याकाल में तथा बिना वितान (चंदोवे) वाले घर में नहीं करना चाहिए।११
सह भोजन लोगों के साथ में भोजन करते समय उनके पहले ही भोजन समाप्त कर देना चाहिए अन्यथा उनका दृष्टि-विष (नजर) लग जाता है । २
८. पृ०५०१, श्लोक ३२८, ३२६ १ पृ० ११०, श्लोक ३३० १०. पृ० वही, श्लोक ३३५ ११. पृ० वही, श्लोक ३३३ १२. पृ० वही, श्लोक ३३ :
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org.