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________________ कफ वर्षा यशस्तिलककालीन सामाजिक जीवन कभी प्रशान्त होते हैं, इसलिए विभिन्न ऋतुओं के अनुसार ही भोजन करना चाहिए वात आदि के संचय, प्रकोप तथा प्रशमन का क्रम निम्न प्रकार हैदोष नाम संचय प्रकोप प्रशमन शिशिर वसन्त ग्रीष्म वात ग्रीष्म वर्षा शरद पित्त शरद हेमन्त ऋतु-चर्या-उपर्युक्त प्रकार से प्रकृति परिवर्तन को ध्यान में रखकर भोजनपान की व्यवस्था बनाना चाहिए । यशस्तिलक में विभिन्न ऋतुओं के भोजन-पान के लिए निम्न प्रकार जानकारी दी है - ऋतु खाद्य-पेय शरद स्वादु (मधुर), तिक्त, काषाय वर्षा मधुर, नमकीन, अम्ल (खट्टा) वसन्त तीक्ष्ण, तिल, काषाय ग्रीष्म प्रशम रस वाले अन्न इस प्रकार के भोजन-पान के लिए सोमदेव ने ऋतुओं के अनुसार खान-पान तथा उपभोग्य सामग्री का विवरण इस प्रकार दिया है ६ऋतु खाद्य-पेय तथा उपभोग्य सामग्री ताजा भोजन, क्षीर (दुग्ध), उड़द, इक्षु, दधि, घृत और तैल के बने पदार्थ, पुरन्ध्री। वसन्त जौ और गेहूँ का बना प्रायः रूक्ष भोजन ग्रीष्म सुगन्धित चावलों का भात, घी डली हुई मूंग की दाल, विष (कमल नाल), किसलय (मधुर पल्लव), कन्द, सत्त, पानक (ठंडाई) प्राम, नारियल का पानी तथा चीनी डला पानी या दूध । शिशिर ४. शिशिरसुरभिधर्मेष्वातपाम्भः शरत्सु, क्षितिप जलशरद्धेमन्तकालेषु चैते । कफपवनदुताशाः संचयं च प्रकोपं प्रशममिह भजन्ते जन्मभाजां क्रमेण ॥ -पृ.११४, श्लोक ३४८ १. पृ० ११४, श्लोक ३४६ ६. पृ०५६४, शोक ३५०-५४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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