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परिच्छेद छह
स्वास्थ्य, रोग और उनकी परिचर्या
खान-पान और स्वास्थ्य का अनन्य सम्बन्ध है । उपनिषदों में आता है कि से ही व्यक्ति दृष्टा, श्रोता, मन्ता, बोद्धा, कर्ता और विज्ञाता बनता है । आहार शुद्धि पर विचार शुद्धि आधारित है । विचार शुद्धि से स्मृति और स्मृति से मोक्ष होता है । अन्न से ही प्रजा उत्पन्न होती है और जीती है । "
इसी तरह जल को अमृत और विष दोनों कहा गया है, उचित समय पर उचित मात्रा में पिया गया जल अमृत है और अनुचित समय में अव्यवस्थित रूप से पिया गया विष । इसलिए स्वास्थ्य के लिए खान-पान में सन्तुलन एवं व्यवस्था आवश्यक है ।
मनुष्यों की प्रकृति विभिन्न प्रकार की होती है । ऋतु परिवर्तन के साथ प्रकृति में भी परिवर्तन होता रहता है । इसलिए सोमदेव ने विभिन्न प्रकृति तथा ऋतूके अनुसार खान-पान की जानकारी दी है । 3
सम । मन्द अग्नि वाले को लघु ( हलका ), विषम अग्नि वाले को स्निग्ध तथा सम अग्नि
जठराग्नि -- जठराग्नि चार प्रकार की होती है— मन्द, तीक्ष्ण, विषम और ' तीक्ष्ण अग्नि वाले को गुरु (भारी) वाले को सम पदार्थ खाना चाहिए । प्रकृति परिवर्तन - ऋतु के अनुसार मनुष्य की प्रकृति में भी परिवर्तन होता रहता है, वात, पित तथा कफ कभी संचित, कभी प्रकुपित (जागृत) तथा
1.
अथान्नस्यै दृष्टा भवति, श्रोता भवति, मन्ता भवति, बौद्धा भवति, कर्त्ता भवति, विज्ञाता भवति । - छान्दो० ७, ९,
आहार शुद्धौ सत्त्वशुद्धिः सत्वशुद्धौ ध्रुवास्मृतिः, स्मृतिलम्भः सर्वग्रन्थीनां विप्रमोक्षः । - वही, ७, २६, ३
अन्नाद्वै प्रजा प्रजायन्ते - अथान्नेनैव जीवन्ति । - तैत्तरीय०२, २
उद्घृत, डॉ० ओमप्रकाश - फूड एण्ड ड्रिंक इन एन्शिएन्ट इंडिया, इंट्रोडक्शन,
फुटनोट
२. श्रमृतं विषमिति चेतत् सलिलं निगदन्ति विदिततत्वार्थः । युक्त्या सेवितममृतं विषमेतदयुक्तितः
३. पृ० ५१३, श्लोक ३४७
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पीतम् । - यश० ३/३६८
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