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यशस्तिलककालीन सामाजिक जीवन
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मांसाहार समर्थक कहते हैं कि मुद्ग (मूंग) और माष (उड़द ) आदि भी तो मय (ऊँट) और मेष (भेड़ ) आदि के समान ही जीवस्थान होने से मांस ही हैं । उनमें अन्तर क्या है । ६८
सोमदेव ने इस कथन का व्यावहारिक पृष्ठभूमि पर दृढ़तापूर्वक खण्डन किया है । उन्होंने लिखा है कि यह जरूरी नहीं कि जो जीव शरीर हो वह मांस ही हो, इसके विपरीत मांस तो जीव-शरीर है ही, उसी प्रकार जिस प्रकार नीम का वृक्ष वृक्ष है ही, किन्तु जो वृक्ष है वह नीम ही हो, यह जरूरी नहीं । गाय का दूध शुद्ध है, किन्तु गोमांस नहीं । सर्प का रत्न विष को नाश करता है, किन्तु विष विपदकारक है । किसी-किसी वृक्ष के पत्र तो आयुष्य के कारण होते हैं, किन्तु जड़ें मृत्युकारी । ६९
६८. जीवयोग्या विशेषेण मयमेषादिकायवत् ।
मुद्गमाषादिकायोsपि मांसमित्यपरे जगुः ॥ पृ० ३३० उत्त ६६. मांसं जीवशरीरं जीवशरीरं भवेन्न वा मांसम् ।
निम्बो वृक्षो वृक्षस्तु भवेन्न वा निम्बः ॥ पृ० ३३१ उत्त०
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