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यशस्तिलककालीन सामाजिक जीवन
१०५ यशोमति की महारानी कुसुमावली को दोहद उ हुआ था कि भोजनालय में मांस नहीं आना चाहिए।५६ सम्राट के भोजनालय में मांस पकाने की शिक्षा (पिशितपाकोपदेश, २२२ उत्त०) देनेवाले विद्यमान थे। इस सबसे स्पष्ट है कि क्षत्रिय परिवारों में मांस का व्यवहार होता था। ___ ब्राह्मणों में साधारणतया मांसभक्षण का रिवाज हो या नहीं, यज्ञ और श्राद्ध के नाम पर मांस खाने का अत्यधिक प्रचार था। सम्राट के यहाँ जब विशाल मत्स्य और मगर पकड़ कर लाए तो उन्हें देख कर सम्राट ने उन्हें पितरो के संतर्पण के लिए ब्राह्मणों को दे दिया ।५७ इतना ही नहीं, वे सब प्रतिदिन उनमें से अपने उपयोग के योग्य मांस काटते थे।८
एक कथा में याज्ञिक पर आक्षेप किया गया है कि उसने यज्ञ के नाम पर अनेक निरीह पशुओं को खा ढाला ।५९
सोमदेव ने वैदिक साहित्य से ऐसे अनेक पद्य उद्धत किये हैं, जिनसे यज्ञ तथा श्राद्ध में मांस के प्रयोग का पता चलता है।
मनु ने मधुपर्क, यज्ञ तथा पितृ एवं देवता के निमित्त मांस का प्रयोग शास्त्र सम्मत बताया है।६० यज्ञ के लिए मांस प्रयोग के समर्थन में वैदिक मान्यताओं का विस्तार से वर्णन किया है।६१ मांस के समर्थकों का तो यहाँ तक कहना है कि जो व्यक्ति मांस के बिना भोजन करता है, क्या वह गोबर नहीं खाता । ६२
श्राद्ध में मांस के विवेचन के लिए सोमदेव ने मनुस्मृति के पाँच पद्य (३।२६७२७१ ) उद्धृत किये हैं, जिनमें कहा गया है कि पितृ लोक मात्स्य, हारिण, । औरभ, शाकुनि छाग, पार्ष, एण, रोरव, वाराह, माहिष, शश, कूर्म, गव्यरण,
१६. देव, प्रतिबन्ध्यतां महानसेषु क्रव्यागमः।-पृ० २६०, उत्त. २७. महीपतिरवलोक्य पितसंत पेणार्थ द्विजसमाजसत्ररसवतीकाराय समर्पयामास ।
-पृ० २१८ उत्त. ५८. तत्र च तदुपयोगमात्रतया प्रत्यहमुत्कृत्यमानकायैकदेशः।-वही २६. अन्ये खलु ते वराकतनयः । मखमिषेण भवता भक्षिताः।-पृ० १३२ उत्त. ६०. मधुपर्के च यशे च पितदैवतकर्मणी ।
अत्रैवपशवो हिंस्या नाम्यत्रेत्यब्रवीन्मनु ।-पृ० १० उत्त । मनु० १४१ ६३. वह', पृ. ११६-१८ ६२. ये मुंजते मांसरसेन हीन ते मुंजते किं नु न गोमयेन ।-पृ० १२६ उत्तः
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