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________________ १०४ यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन जैनधर्म मांसाहार का स्पष्ट निषेध करता है, यही कारण है कि सोमदेव ने भी मांसाहार का घोर विरोध किया है। इतना होने पर भी यह नहीं माना जा सकता कि सोमदेव के युग में मांसाहार नहीं था। यशस्तिलक में ऐसे अनेक प्रसंग आए हैं जिनसे मांसाहार का पता चलता है । कौल-कापालिक संप्रदायों में मांसाहार और मद्य का व्यवहार धार्मिक क्रियानों के रूप में अनुमत था,५० इसलिए उन संप्रदायों में मांस का व्यवहार स्वाभाविक था । जलचर, थलचर तथा नभचर सभी प्राणियों का मांस खाया जाता था। देवी के नाम पर तो ये मनुष्य तक की बलि कर देते थे । बहुत सम्भव है कि प्रसाद के रूप में मनुष्य का भी मांस खा लेते हों। अपना मांस काट काट-काटकर क्रय-विक्रय करने का उल्लेख है।५१ चण्डमारी के मन्दिर में बलि के लिए निम्नलिखित पशु-पक्षी लाए गये थे।५२ (१) मेष, महिष, मय, मातंग (गज), मितंद्रु (अश्व)। (२) कुम्भीर, मकर, सालूर (मेंढक), कुलीर (केंकड़ा), कमठ और पाठीन । (३) भेरुण्ड, क्रौंच, कोक, कुर्कुट, कुरर, कलहंस । (४) चमर, चमू रु, हरिण, हरि (सिंह), वृक, वराह, वानर, गोखुर । कौलों में तो कच्चे मांस खाने तक का रिवाज था। ५३ । क्षत्रिय तथा ब्राह्मण जातियों में भी मांसाहार का चलन था। यशस्तिलक में राजमाता कहती है कि पिष्टकुक्कुट की बलि देकर उसके अवशिष्ट भाग को मांस मानकर हमारे साथ खाम्रो । अमृतमति तो अत्यन्त मांसप्रिय थी। जिस मेमने को अतिशय प्यार के साथ राजभवन में पाला गया था उसे भी उसने नहीं बचने दिया।५५ २०. रण्डाचण्डा दिक्खिया धम्मदारा मज्ज मंसं पिज्जए खजए च। भिक्खा भोजं चम्मखण्डं च सेज्जा कोलो धम्मो कस्स न होइ रम्मो॥ -कर्पूरमंजरी, २३ मज मंसं मिठं भक्खं भक्खियं जीवसोक्खं च। कउले धम्मे विसरे रम्मे तं जि हो सगमोक्खं ॥~भावसंग्रह, १८३ ५.. क्रियविक्रीयमाणस्ववपुर्वल्लूरम् ।-यश० पृ० ४६ १२. पृ० १४४ ५३. पिथुरार्पितजरूथमन्थरकपालशकलम् ।-पृ. ४८ ५४. पिष्टकुक्कुटेन बलिमुपकल्प्य तदवशिष्टं पिष्टं मांसमिति च परिकल्प्य मया सहावश्यं प्राशनीयम् ।--पृ० १३५ उत्त० । ५५. जांगलभक्षणाक्षिप्तचित्तया -पृ० २२७ उत्त. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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