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________________ यशस्तिलककालीन सामाजिक जीवन १०३ नासिका तथा रसना को आनन्द प्रदान करने वाले खाण्डव प्राप्त होते हैं, प्रियतमा के अधरों के समान आस्वादन करने योग्य पक्वान्न उपलब्ध होते हैं, तरुणी के पयोधरों के समान सुजाताभोग एवं स्तब्ध ( कठोर ) दही मिलता है, प्रणयिनी के विलोकन की तरह मधुरकान्ति एवं स्निग्ध दुग्ध उपलब्ध होता है, अभिनव अंगना की तरह अतीव स्वादु शर्करायुक्त परमान्न प्राप्त होते हैं, तथा मैथुन रस- रहस्य की तरह सम्पूर्ण शरीर के सन्ताप को दूर करने वाला कर्पूरयुक्त जल पीने को मिलता है । ४७ गरीब परिवारों में यवनाल का भात, राजमाष की दाल, अलसी आदि का तेल, काँजी, मट्ठा तथा अनेक प्रकार के फल एवं पत्तों के साग खाने का रिवाज था । 8८ उपर्युक्त वर्णन की तरह सोमदेव ने एक गरीब परिवार के खान-पान का भी चित्र प्रस्तुत किया है । सम्राट ने शंखनक से पूछा - " आज कहीं हस्तमुख संयोग हुआ या नहीं ?" शंखनक बोला - "देव, हुआ है । सुनिए - मक्खी के मुण्डों की तरह काले-काले तुषयुक्त गन्दे, पुराने, टूटे यवनालों का भात मिला, उसमें भी अनेक कंकरण थे, पिछले दिन की राजमाष की दाल मिलो, जिसमें से अत्यन्त दुर्गन्ध आती थी, उसमें चूहे के मूत्र की तरह जरा-सा अलसी का तेल टपका दिया था, अधपके ऐवारु की बहुत सारी सब्जी मिली, आधे राधे गये अलाबु की बहुत-सी फाँकें तथा कुछ पके हुए कर्कारु के कड़े कड़े टुकड़े मिले, बड़ेबड़े बेल, मूली, चक्रक, बिना फूटी कचरियाँ, कच्चे अर्क, अग्निदमन, रिगिणी - फल, अगस्ति, आम्र, आम्रातक, पिचुमन्द तथा कन्दल उपलब्ध हुए, कई दिनों की माँग-माँग कर इकट्ठी की गयो आम्लखलक मिली, खूब पके, बड़े-बड़े बैंगन, सोभाजन, कन्द, सालनक, एरण्ड, पलाण्डु, मुण्डिका, वल्लक, रालका, तथा कोकुन्द प्राप्त हुए, बहुत-सी राई डाली हुई कांजी तथा खारा पानी पीने को मिला । मुझसे कुछ भी नहीं खाया गया, न भूख मिटी । उसी की घरवाली ने छिपाकर रखा हुआ थोड़ा-सा श्यामाक का भात तथा खड्डे दही का मट्ठा दिया, जिससे जिन्दा बचा रहा । ४९ मांसाहार सोमदेव जैन साधु थे । अहिंसा ४७. पृ० ४०३ ४८. पृ० ४०३ ४६. वहीं Jain Education International चरम विकास में आस्था रखने वाला For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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