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________________ यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन सिक्तसंयुक्तवनस्पतिव्यंजन किया है ।१४ मानसोल्लास में व्यंजन के बारे में कहा है कि--चावल के धोवन में चिंचा, दही, मट्ठा तथा चीनी मिलाकर इलायची का चूर्ण तथा अदरख का रस मिलाए तथा हींग का छौंक लगाए, उसे व्यंजन कहते हैं ।४५ १३. उपदंश (४०४)-सब्जी १४. सर्पिषिस्नात (५२७)-घी में तले गये पदार्थ १५. अंगारपाचित (५१७)-अङ्गारों पर पकाए गये पदार्थ १६. दध्नापरिप्लुत (५१६)-दही में डूबे हुए पदार्थ १७. पयसा विशुष्क (५१६)--सूखी सब्जी आदि १८. पर्पट (५१६)-पापड़ सोमदेव ने अमीर तथा गरीब दोनों परिवारों के खान-पान का सुन्दर चित्र खींचा है। अमीर परिवारों में दीदिवि, अनेक प्रकार की दालें, प्रचुर मात्रा में आज्य, रसीले अवदंश, खाण्डव, पक्वान्न, दही, दुग्ध, परमान्न आदि खाने-पीने का प्रचार था। जल भी कर्पूर आदि सुगन्धित द्रव्यों से युक्त करके पीते थे।४६ सोमदेव ने अत्यन्त मनोरंजक ढंग से इस प्रसंग को प्रस्तुत किया है "देशान्तर प्रवास के बाद दूत लौटा । सम्राट ने परिहास में पूछा-'शंखनक, तुम्हारी वह तोंद कहाँ गयी ?' शंखनक बोला--देव, तोंद हम गरीबों के कहाँ रखी, तोंद तो उनकी फटती है, जिनको रोज-रोज कामिनी-कटाक्षों की तरह लम्बे-लम्बे एवं उज्ज्वल दीदिवि (सुगन्धित चावलों का भात) खाने को मिलते हैं, जिनको विरहणियों के हृदयों के समान गरम-गरम तथा सोने के रंग को मात करनेवाली दाले उपलब्ध होती हैं, कान्ता के मुख की तरह प्रांजलि-पेय सुगन्ध वाला प्रचुर मात्रा में प्राज्य प्राप्त होता है, स्त्री के कैतवों के समान मन को प्रसन्न करने वाले रसीले अवदंश मिलते हैं, नर्तकी के विलास की तरह मनोहर नेत्र, ४४. अवदशैः शालनकैः मक्तिसिक्तसंयुक्तवनस्पतव्यंजनैः । --वहीं, सं. टी. . . ४५. तण्डुलबालितं तोयं चिंचाम्लेन विमिश्रितम् । ईष तक्रेण संयुक्तं सितया सह योजितम् ।। एलाचूर्णसमायुक्तमाकस्य रसेन च । धूपितं हिंगुनां सम्यक् व्यंजनं परिकीर्तितम् ॥ -मानसोल्लास, भा० ३, १९७८-७९ ४६. पृ० ४१५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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