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यशस्तिलककालीन सामाजिक जीवन
१०१ तो खाण्डव की पहचान आयुर्वेदिक ग्रन्थों में आनेवाले 'षाडव' से करना चाहिए ।३९ षाडव में खट्टा, मीठा स्पष्ट प्रतीत होता था तथा कसैला और नमकीन कम । लगता है खांड की मात्रा अधिक होने के कारण यह खाण्डव कहा जाने लगा।
६. रसाल (७९ उत्त०)-शिखरणी : सोमदेव ने रसाल को 'सङ्कीर्णरसा' कहा है ।४० अच्छी तरह जमे हुए दही में सफेद चीनी, घी, मधु तथा सोंठ और कालीमिर्च का चूर्ण कपड़छन करके डालकर कर्पूर से सुगन्धित करके रसाल तैयार किया जाता था । ४१
१०. आमिना (३२४) : उबाले गये दूध में दही डालकर आमिक्षा बनता था (शृते क्षीरे दविक्षिप्तमामिक्षा कथ्यते बुधैः, सं० टी०)। आमिक्षा और पृषदाज्य की अग्नि में आहुति दी जाती थी (पृषदाज्येनामिक्ष या च समेधितमहसम्, वही)। प्रामिक्षा और पृषदाज्य दोनों वैदिक शब्द थे। यजुर्वेद संहिताओं तथा सत्पथब्राह्मण में इसके अनेक उल्लेख पाते हैं । ४ २२
११. पक्वान्न (४०२)—पकवान : पक्वान्न के लिए सोमदेव ने प्रियतमा के अधरों के समान स्वादयुक्त कहा है (प्रियतमाधरैरिव स्वादमानैः परवान्नैः, वही) । पक्वान्न का प्रयोग सामान्य रूप से घृत या तेल में बने हुए पकवानों के लिए हुआ है।
१२. अवदंश : मन को प्रीति उत्पन्न करने वाली रसदार सब्जियों को सोमदेव ने स्त्रियों के कैतव की उपमा दी है।४२ श्रुतसागर ने अवदंश का अर्थ भक्ति
३६. चरक० सं० २७२८०, सुश्रुत सं० ४६।३७८ ४०. रसाला मिव संकीर्णरसासरालाम् ।-पृ०७६ उत्त. ४६. अर्धाटकं सुचिरपर्युषितस्य दधनः खण्डस्य षोडशपलानि शितप्रभस्य ।
सपिः पलं मधुपलं मरिचद्विकर्ष शुख्याः पलार्धमपि चार्धपलं चतुर्णाम् ॥ श्लो पटे ललनया मृदुपाणिपुष्टा कर्पूरधूलिसुरभीकृतभाण्डसंस्था । एषा वृकोदर कृता सरसा रसाला यास्वादिता भगवता मधुसूदनेन ॥
-उद्धत -वही, सं० टो. अपक्वतकं सव्योष चतुर्जागुडकम् । सजीरक रसाल स्यान्मज्जिका शिखरिणाः ।। सव्योषम-शुण्ठीपिप्पलीमरिचयुक्तम् । चतुर्जातम् एलालवंगकंकोलनागपुष्पाणि ।।
वैजयन्ती, उद्धृत, ओम प्रकाश-वही, पृ० १०५, फुटनोट ३ ४३. ओमप्रकाश-वही, पृ. २८४ ४३, स्त्रीकैतवैरिवजनितस्वान्तप्रीतिभिबहुरसवशैरवदंशैः ।-पृ० ४..
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