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यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन
सोमदेव ने यवागू सामान्य (८८) तथा अपामार्ग यवागू (६९) का उल्लेख किया है । वसन्तिका कहती है कि मैं स्वप्न में यवागू बन गयी तथा माँ के द्वारा श्राद्ध के लिए ग्रामन्त्रित ब्राह्मणों ने मुझे खा लिया । सोमदेव ने अपामार्ग यवागू को पचाना मुश्किल बताया है । ३
६. मोदक (८, उत्त० ) - लड्डू : चावल, गेहूँ अथवा दाल के प्राटे को भून कर घी, चीनी या गुड़ डाल कर गेंद के समान बनाए गये मिष्ठान्न को मोदक कहते थे । ३२ प्राचीन काल से मोदक बनाने का यही ढंग सुरक्षित चला आ रहा है ।
७. परमान्न (४०२ ) : यशस्तिलक में परमान्न को अभिनव अङ्गना-सङ्गम की तरह अत्यन्त स्वादयुक्त तथा शर्करायुक्त कहा गया है । ३३ परमान्न चार भाग चावलों को बारह भाग दूध में पका कर उसमें छह भाग मक्खन तथा तीन भाग गुड़ या शर्करा मिला कर बनाया जाता था । ( अङ्गविज्जा, पृ० २२०, भोजनकुतुहल, पृ० २८ ) । ३४
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८. खाण्डव (४०२ ) : खाण्डव को यशस्तिलक में नर्तकी के विलास की तरह नेत्र, नासिका तथा रसना को आनन्द देने वाला कहा है । २५ रामायण के उत्तरकाण्ड में यज्ञ के उपरान्त विभिन्न प्रकार के गौड ( गुड़ से बने पदार्थ तथा खाण्डवों (खाण्ड से बने पदार्थों) को बाँटने का उल्लेख है । महाभारत में भी खाण्डव का उल्लेख है । ३७ अष्टांगसंग्रह (सू० ७) में इसे एक प्रकार का मुरब्बा कहा है । डॉ० ओमप्रकाश ने इन उल्लेखों का उपयोग अत्यन्त सीधा-साधा अर्थ खाण्ड की मिठाई किया है । ३८
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करके भी खाण्डव का सोमदेव की साक्षी से
३०. स्वप्ने किलाहं यवागूरिव संवृतास्मि भुक्ता च मन्मातुः श्राद्धामन्त्रितै भू देवैः ।
- पृ० ८८ उत्त०
३१. अपामार्गयवागूवि लब्धापि न शक्यते परिणमयितुम् । - १०६६ उत्त० ३२. ओमप्रकाश, वही, पृ० २८६
२३. अभिनवांगना संगमैरिवानीवस्वादुभिः शर्करा संपर्क समापन्नैः परमान्नैः ।
३४. श्रोमप्रकाश, वही, पृ०२८९, ९० ३५. लासिका विलासैरिव मनोहरैः समानीतनेत्र नासारस नानन्दभावैः खाण्डवैः । - पृ० ४०१,
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३६. विविधानि च गौडानि खाण्डवानि तथैव च । - रामायण, उत्त० ९२/१२ ३७. मक्ष्य खाण्डवरागायाम् । - महाभारत, १४, ८६, ४१ ३८. ओमप्रकाश, वही, पृ० २८७
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- पृ० ४०२
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