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________________ यशस्तिलककालीन सामाजिक जीवन ९३ कलम शालि का ही एक प्रकार था । जैनागमों में शालि के तोन भेद मिलते हैं – (१) रक्तशालि, (२) कलमशालि तथा ( ३ ) महाशालि । सुश्रुत ने शालि के १५ प्रकार गिनाए हैं । उवा सगदसा ( १, ३५ ) के अनुसार कलमशालि मगध में उत्पन्न होता था । सोमदेव ने कलम को ठंड की ऋतु के भोजन में गिनाया है तथा शालि का उपयोग वर्षा और शरद् ऋतु के लिए निर्दिष्ट किया है । ७ कलम की बालियाँ लम्बी-लम्बी होती थीं और पकने पर लटक जाती थीं । कलम के खेत जब पकने लगते तब उनकी खास तौर से रखवाली करनी पड़ती थी । कालिदास ने गन्नों की छाया में बैठकर गाती हुई शालि की रखवाली करने वाली स्त्रियों का उल्लेख किया है ।९ भारवि तथा माघ ने भी कलम के खेतों की रखवाली करनेवाली स्त्रियों का उल्लेख किया है । 90 एक ओर धूप से कलम के खेतों का पानी सूखने लगता, दूसरी ओर कलम पककर पीले होने लगते हैं ।' ७. यवनाल ( ४०४ ) जुनार ८. चिपिट ( ४६६ ) चिउड़ा : धान को थोड़ा उबालकर मूसल या ढेंकी लेते हैं, ऐसा करने से धान का छिलका अलग हो जाता है तथा चात्रल अलग हो जाता है । इसे ही चिपट या चिउड़ा कहते हैं । बंगाल और बिहार में चिउड़ा खाने का बहुत रिवाज है । मध्यप्रदेश के रायगढ़, बिलासपुर, रायपुर, सरगुजा आदि जिलों में तथा उत्तरप्रदेश के कई जिलों में भी चिउड़ा खाने का रिवाज है । सम्पन्न परिवारों में चिउड़ा दही के साथ खाते हैं, गरीब तथा साधा - ररण परिवारों में पानी में फुलाकर अथवा सूखा ही चिउड़ा गुड़, नमक, मिर्च तथा प्याज आदि के साथ खाया जाता है | से कूट सोमदेव ने लिखा है कि तिरहुत के सैनिकों के मसूड़े निरन्तर चिउड़ा चबाते रहने के कारण छिल गये थे । १२ ६. वही पृ० १८, ५६, २६२ ७. यशस्तिलक पृ० ११५, ११६ ८. आप पद्मणत कलमा इव ते रघुम् । - रघुवंश, ४३७ ६. इक्षुच्छायानिषादिन्यः शालिगोप्यो जगुर्यशः । - रघुवंश, ४१२० go. सुतेन पाण्डोः कमलस्य गोपिकाम् । - किरात ० ४।६ ११. कलमगोपवधू मृगव्रजम् । - शिशु० ६ | ४६ उपैति शुष्य कलम : सहाम्भसा मनोभुवा तप्त इवाभिपाण्डुताम् । १२. अनवरत चिपिटचर्वणदीपदशनाग्रदेशैः । यश० पृ०४६६ Jain Education International For Private, & Personal Use Only - किरात • ४ ३४ www.jainelibrary.org
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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