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________________ यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन छोड़ देना (द्विदलं, ३३५ उत्त०), मिलाकर बनाना (मिश्रम्, ३३४ उत्त०), अकेला बनाना (अमिश्रम्, ३३४, उत्त०)। बिना पकाई गयी खाद्यसामग्री यशस्तिलक में वर्णित सम्पूर्ण खाद्यसामग्री निम्नप्रकार संकलित की जा सकती है १. गोधूम (५१५) : गेहूँ २. यव (१५, ५१९) : जौ। ३. दीदिवि (४०१) : लम्बे तथा उज्ज्वल चावल। सोमदेव ने इसे कामिनिजन के कटाक्षों की तरह अतिदीर्घ एवं उज्ज्वल कहा है ।' दीदिवि मूलतः वैदिक शब्द है । ऋग्वेद (१, १, ८) में इसका चमकते हुए के अर्थ में प्रयोग हुआ है। अग्नि तथा बृहस्पति के विशेष ण के रूप में भी इसका प्रयोग होता है। ४. श्यामाक ( ४०६ ) : समा ( साँवाँ )। सोमदेव ने श्यामाक के भात को सर्वपात्रीण ( सभी साधुनों के द्वारा लेने योग्य ) कहा है।३ कालिदास ने शाकुन्तल में श्यामाक का उल्लेख किया है। कण्व के आश्रम में हरिणों को श्यामाक खिलाकर बढ़ाया गया था।४ यजुर्वेद संहिताओं में इसके सबसे प्राचीन उल्लेख मिलते हैं। आपस्तम्भ में इसे बिना बोये उत्पन्न होनेवाला धान्य कहा है। इसका उपयोग साधु-संन्यासी लोग करते थे। श्यामाक के तीन प्रकारों का पता चलता है—(१) राज श्यामाक, (२) अंभ श्यामाक या तोय श्यामाक तथा (३) हस्ति श्यामाक । समा ( साँवाँ ) से इसको पहचान की जाती है। समा कोद्रव, बाजरा आदि की श्रेणी का सबसे छोटा धान्य है । इसका रंग साँवला होता है । उत्तर तथा मध्यभारत में कहीं-कहीं अभी भी लोग समा या साँवाँ पैदा करते हैं। ५. शालि (५१५-५१६ ) : एक विशेष प्रकार का सुगन्धित चावल। ६. कलम ( ५१५) : एक विशेष प्रकार का सुगन्धित चावल । यह धान्य पानी बरसते ही बो दिया जाता था। करीब एक फिट के पौधे होने पर उखाड़कर दूसरी जगह खेत में रोप दिये जाते थे। ठंड के महीनों ( अगहन-पौष ) तक यह धान्य तैयार हो जाता था। १. कामिनीजनकटाक्षरिवातिदीर्घ विषदच्छवि भि: ।-पृ० ४०१ २. आप्टे-संस्कृत इंग्लिश डिक्शनरी पृ० ११६ ३. सर्वपात्रीणः दयामः कभक्तः ।-पृ०४०६ ४. श्यामाकमुष्टिपरिवर्धितो जहाति । शाकुन्तल, ४।१३ ५. ओमप्रकाश-फूड एण्ड ड्रिंक इन ऐंशिएन्ट इंडिया पृ० २६१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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