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यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन
अलबरूनी ने लिखा है कि हिन्दू लोग अपने लड़कों के विवाह का आयोजन करते थे, क्योंकि विवाह बहुत ही छोटी अवस्था में होते थे। १६ एक स्थान पर यह भी लिखा है कि ब्राह्मणों में अरजस्वला कन्या को ही ग्रहण किया जाता था ।१७ गुप्त काल में बाल-विवाह का प्रचलन रहा । १८ आगे चलकर राष्ट्रकूटयुग में भी यही परम्परा चलती रही। ९ सोमदेव ने स्पष्ट शब्दों में अपने दोनों ग्रन्थों में बारह वर्ष की कन्या और सोलह वर्ष के युवा को विवाह के योग्य बताया है । २०
देव, द्विज और अग्नि की साक्षि में माता-पिता कन्यादान करते थे।
स्वयंवर के अतिरिक्त कन्याओं को संभवतया वर पसन्द करने का अधिकार नहीं था। माता-पिता जिसके साथ विवाह कर दें, वही उन्हें स्वीकार करना पड़ता था। सोमदेव ने ऐसे सम्बन्धों की बुराइयों की ओर लक्ष्य दिलाया है। अमृतमति कहती है कि देव, द्विज और अग्नि के समक्ष माता-पिता द्वारा बेचे गये शरीर का पति मालिक हो सकता है, मन का नहीं। मन का स्वामी तो वही है जिसमें असाधारण प्रणय हो । २१
१६, एपिग्राफिया इंडिका, २ पृ. १५४ १७. वही पृ०१३ १८. आर० एन० सालेटोरकर- लाइफ इन दो गुप्ता एक पृ० २८०.१० १६. अल्तेकर-दी राष्ट्रकटाज़ एण्ड देयर टाइम्स पृ. ३४२-४३ २०. यशस्तिलक उत्त, पृ०३७, नीति. ३," २१. देवद्विजाग्निसमक्षं मातापित विक्रीतस्य कायस्यैव भवतीश्वरः, न मनसः ।
तस्य पुनः स एव स्वामी यत्रायमसाधारणः प्रवर्तते परं विश्रम्मविश्रमाश्रयः प्रणयः।-पृ. १४१ उत्त.
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