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________________ यशस्तिलककालीन सामाजिक जीवन ८९ विवाह यशस्तिलक में विवाह के दो प्रकारों की जानकारी पाती है--एक स्वयंवर दूसरे परिवार द्वारा विवाह । स्वयंवर ___ कन्या के परिणय योग्य हो जाने पर उसका पिता देश-विदेश के प्रतिष्ठित लोगों को उसके स्वयंवर की सूचना देता और तदनुसार किसी निश्चित दिन स्वयंवर का आयोजन किया जाता। स्वयंवर-मण्डप में जन-समुदाय उपस्थित होता । कन्या हाथ में वरमाला लेकर मण्डप में प्रवेश करती और अपनी रुचि के अनुसार किसी योग्य व्यक्ति के गले में वरमाला पहना देती। १२ स्वयंवर का प्रचार राजे-महाराजों में ही अधिक था। सम्भवतया कोई-कोई विशिष्ट सम्पन्न व्यक्ति भी स्वयंवर का आयोजन करते थे। स्वयंवर के आयोजन का सारा उत्तरदायित्व आदि से अन्त तक कन्या पक्ष वालों पर ही होता था। परिवार द्वारा विवाह ___ दूसरे प्रकार के विवाह में वर के माता-पिता योग्य धात्री तथा पुरोहित को कन्या की खोज में भेजते थे। धात्री और पुरोहित का कार्य बहुत ही उत्तरदायित्वपूर्ण था। एक तो यह कि योग्य कन्या को तलाश करे, दूसरे कन्या तथा उसके माता-पिता के मन में यह भावना उत्पन्न कर दे कि जिस व्यक्ति का वे प्रस्ताव कर रहे हैं, उससे अधिक योग्य व्यक्ति उस सम्बन्ध के लिए हो ही नहीं सकता। धात्री और पुरोहित की कुशलता से माता-पिता पहले किये गये निर्णय तक को बदल देते थे ।।२ विवाह की आयु बारह वर्ष की कन्या और सोलह वर्ष का युवक विवाह के योग्य माना जाता था ।१४ सोमदेव के बहुत पहले से बाल-विवाह की प्रवृत्ति चली आती थी। हिन्दू धर्मशास्त्र में कन्या के रजस्वला होने के पूर्व विवाह कर देना उचित माना जाता था। उत्तरकालीन स्मृति-ग्रन्थों में इस अवस्था में कन्या का विवाह न करने वाले अभिभावकों को अत्यन्त पाप का भागी बताया गया है ।१५ १२. पृ० ७६, ४७८, ३५१ उत्त० १३. पृ० ३५०-५१ उत्त. १४. वही, पृ० ३१७ १५. बृहद्यम ३, २२, संवर्त १, ६७, यम १, २२, शंख १५, ८, उद्ध त, अल्तेकर दी राष्ट्रकूटाज एण्ड देयर टाइम्स पृ. ४२.४३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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