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यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन
बालक तुतलाते बोलता है, कभी पिता को माँ और माँ को पिता कह देता है । धातृ जब बुलवाती है तो कुछ टूटे-फूटे शब्दों में बोलता है । कुछ सिखाने को बैठा तो नाराज होकर भाग जाता है । कहीं एक जगह नहीं बैठता, बुलाम्रो तो सुनता नहीं, फिर दौड़कर आता है और एक क्षरण बाद फिर भाग जाता है: ( पृ० २३५ ) ।
इस प्रकार बाल्यावस्था का चित्रण करने के उपरान्त चौल-कर्म और विद्याभ्यास का वर्णन किया गया है । विद्याभ्यास के बाद गोदान का निर्देश है ( परिप्राप्तगोदानावसरश्च, पृ० २३७ ) ।
सोमदेव ने एक सुखी पारिवारिक जीवन का चित्रण बहुत ही स्वाभाविक ढंग से किया है ।
स्त्री के विषय में सोमदेव ने लिखा है कि स्त्री के बिना संसार के सारे कार्य व्यर्थ हैं, घर जंगल के समान है और जिन्दगी बेकार ।" एक तरफ सोमदेव ने स्त्री के बिना घर को जंगल और जीवन को व्यर्थ बताया, दूसरी ओर उसके निकृष्टतम स्वरूप का भी स्पष्ट चित्र खींचा है । अग्नि शान्त हो जाए, विष अमृत बन जाए, राक्षसियों को वश में कर लिया जाए, क्रूर जन्तुओंों को भी सेवक बना लिया जाए, पत्थर भी मृदु हो जाए पर स्त्रियाँ अपने वक्र स्वभाव को नहीं छोड़तीं । यशस्तिलक के चौथे श्राश्वास में स्त्रियों के स्वरूप का विस्तृत वर्णन किया है ( पृ० ५३-६३ उत्त० ) 1
इसी प्रसङ्ग में यह भी कह देना उपयुक्त होगा कि सोमदेव स्त्रियों को विशेष शिक्षा देने के पक्षपाती नहीं हैं । उनका कहना है कि स्त्रियों को शिक्षित करना ठीक वैसे ही है जैसे साँप को दूध पिलाना । ९ स्त्रियों को धर्मसाधन में बाधा स्वरूप माना गया है । ० स्त्री के भगिनी, जननी, दूतिका, सहचरी, महानसकी (रसोईन), धातृ तथा भार्या स्वरूप का चित्रण किया गया है । ११
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८. यामन्तरेण जगतो: विफलाः प्रयासः, यामन्तरेण भवनानि वनॊपमानि । यामन्तरेण
हत् संगति जीवितम् च । - पृ० १२६
६. इच्छन्गृहस्थात्मन एव शान्तिं स्त्रियं विदग्धां खलु कः करोति ।
दुग्धेन यः पोषयते भुजंगीं पुंसः कुतस्तस्य सुमङ्गलानि ॥ - पृ० १५२ उत्त० १० द्वयमेव तपःसिद्धौ बुधाः कारणमूचिरे ।
यदनालोकां स्त्रीणां यच्च संग्लापनं तनोः ॥ पृ० ११४
११.५० १५१
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