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________________ परिच्छेद चार पारिवारिक जीवन और विवाह सोमदेवकालीन भारत में संयुक्त परिवार प्रणाली प्रचलित थी । अपने से बड़ों के लिए आदर तथा छोटों के लिए प्यार, इस प्रणाली का मुख्य रहस्य था । इसके बिना संयुक्त परिवार संभव न था । राज-परिवार तक में इस विशेषता का ध्यान रखा जाता था । यशोर्घ जब परिव्रजित होने लगे तो अपने पुत्र को बुलाकर स्नेह मिश्रित शब्दों में अपनी इच्छा व्यक्त की । पुत्र ने भी विनम्रतापूर्वक अपने विचार प्रस्तुत किये । शासन-सूत्र संभालने के बाद भी यशोधर ने अपनी माता की इच्छाओं के आदर का पर्याप्त ध्यान रखा । कहता है कि यदि आप मुझ पर दुष्पुत्र होने का अपवाद इसी प्रसङ्ग में प्रागे चलकर बलि का तीव्र विरोधी होने इसलिए पिष्टकुक्कुट (आटे का मुर्गा ) की बलि देना स्वीकार कर लेता है, क्योंकि आज्ञा न मानने पर अपना अपमान समझ कर वह (माँ) कोई भी अनिष्ट कर सकती थी । ३ यशोधर अपनी माता से न लगायें तो कुछ कहूँ । पर भी यशोधर केवल बड़े लोग भी अपने से छोटों की मर्यादा का ध्यान रखते थे । चन्द्रमती कहती है कि बाल्यावस्था में भले ही जबर्दस्ती, डर दिखाकर या कान खींचकर बच्चे से काम करा लें, किन्तु युवा होने पर तथा जो स्वयं शक्तिसम्पन्न और उच्चपद पर प्रतिष्ठित हो गया हो उसे न तो बलपूर्वक रोकना चाहिए, न काम करने के लिए जबर्दस्ती करना चाहिए । ४ १. पृ० २८२.३८४ २. वदामि किंचिदहं यदि तत्रभवति मथि दुष्पुत्रापावादारागं न विकिरति । ३. परमपमानिता चेयं जरती न जाने किं करिष्यति... भवत्, ननु तवैव पूर्यन्तमत्र कामितानि । -- पृ० १३८, १४० ४. गतः स कालः खलु यत्र पुत्रः खतन्त्रवृत्त्या कार्याणि कार्येत् 'हठान्नयेन भयेन वा Jain Education International - पृ० 8 उत्त० भवत्येवात्र प्रमाणम्, हृदये प्सतानि । कर्णचपेटया वा ॥ युवा निजा देशान े शितश्रीः स्वयंप्रभुः प्राप्तपदप्रतिष्टः । शिष्य : सुतो वात्महितैर्वलाद्धि न शिक्षणीयो न निवारणीयः ॥ - पृ० १२३ उत्त० For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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