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यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन
परमहंस है। अग्नि की तरह सर्वभक्षी (जो मिल जाये वही खा लेने वाला) परमहंस नहीं है। ६७
४६. तपस्वी
जिसका मन ज्ञान से, शरीर चारित्र से और इन्द्रियाँ नियमों से सदा प्रदीप्त रहती हैं, वहो तपस्वी है, कोरा वेष बनाने वाला तपस्वी नहीं । ६८
६७. कर्मात्मनोविवेता यः क्षीरनीरसमानयोः ।
भवेत्परमहंसोऽसौ नाग्निवत्सर्वभक्षकः ||--कल्प ४४, श्लो. ८७६ ६८, शानैर्मनो वपुत्तनियमैरिन्द्रियाणि च ।
नित्यं यस्य प्रदीप्तानि स तपस्वी न वेषवान् ॥-कल्प ४४, श्लो० ८७७
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