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यशस्तिलककालीन सामाजिक जीवन
४३. अनाश्वान्
जो इन्द्रियरूपी चोरों का विश्वास नहीं करता तथा शाश्वत मार्ग पर दृढ़ रहता है, और सब प्राणी जिसका विश्वास करते हैं, उसे अनाश्वान् कहते हैं । ६२
४४. योगी
जिसकी आत्मा तत्त्व में लीन है, मन आत्मा में लीन है और इन्द्रियाँ मन में लीन हैं, उसे योगी कहते हैं । ६३
४५. पंचाग्नि साधक __ काम, क्रोध, मद, माया और लोभ ये पाँच अग्नियाँ हैं। जो इन पाँचों अग्नियों को अपने वश में कर लेता है, वह पंचाग्निसाधक है। ६४
४६. ब्रह्मचारी
ज्ञान को ब्रह्म कहते हैं, दया को ब्रह्म कहते हैं, काम के निग्रह को ब्रह्म कहते हैं। जो आत्मा अच्छी रीति से ज्ञान की आराधना करता है, या दया का पालन करता है, या काम का निग्रह करता है, उसे ब्रह्मचारी कहते हैं ।६५
४७. शिखाच्छेदी
जिसने ज्ञानरूपी तलवार से संसाररूपी अग्नि की शिखा याने लपटों को काट डाला, उसे शिखाच्छेदी कहते हैं, सिर घुटाने वाले को नहीं।६६
४८. परमहंस
संसार अवस्था में कर्म और आत्मा, दूध और पानी की तरह मिले हुए हैं। जो कर्म और आत्मा को दूध और पानी की तरह पृथक्-पृथक् कर देता है, वह
६३. योऽतस्तेनेष्वविश्वस्तः शाश्वते पथि निष्ठितः ।
समस्त सत्त्वविश्वास्यः सोऽनाश्वानिह गीर्यते ।।-कल्प ४४, श्लो°८६६ ६३. तत्त्वे पुमान्मनः पुंसि मनस्यक्षकदम्बकम् ।
यस्य युक्तं स योगी स्यान्न परेच्छादुरीहितः ॥-कल्प ४४, श्लो०८७० ६४. कामः क्रोधो मदो माया लोभश्चेत्यग्निपंचकम् ।
येनेदं साधितं स स्यात्कृती पंचाग्निसाधकः ॥-कल्प ४४, श्लो०८७१ ६५. ज्ञानं ब्रह्म दया ब्रह्म ब्रह्म कामविनिग्रहः ।
सम्यगत्र वसन्नात्मा ब्रह्मचारी भवेन्नरः ॥-कल्प ४४, श्लो०८७२ ६६. संसाराग्निशिखाच्छेदो येन ज्ञानासिना कृतः।
तं शिखाच्छे दिनं प्राहुन तु मुण्डितमस्तकम् ॥-कल्प ४४, श्लो. ८७५
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