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यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन
३६. अनगार
जो शरीररूपी घर में भी उदासीन होता है उसे अनगार कहते हैं । ५५
३७. शुचि
जो श्रात्मा को मलिन करने वाले कर्मरूपी दुर्जनों से सम्पर्क नहीं रखता वह शुचि कहलाता है । ५६
३८. निर्मम
जो धर्म और कर्म के फल के प्रति उदासीन है तथा अधर्माचरण से निवृत्त आत्मा ही जिसका परिच्छद है उसे निर्मम कहते हैं । ५७
३६. मुमुक्षु
जो पुण्य और पाप दोनों कर्मों से रहित हैं वे मुमुक्षु कहलाते हैं । ५८
४०. शंसितव्रत
जो ममता, अहंकार, मान, मद तथा मत्सर रहित है तथा निन्दा और स्तुति में समान बुद्धि रखता है, उसे शंसितव्रत कहते हैं । ५९
४१. वाचंयम
जो आम्नाय के अनुसार तत्त्व को जानकर उसी का एक मात्र ध्यान करता है, उसे वाचंयम कहते हैं । पशु की तरह मौन रहने वाला वाचंयम नहीं । ६०
४२. अनूचान
जिसका मन श्रुत ( शास्त्र) में, व्रत में, ध्यान में, संयम में, नियम में तथा यम में संलग्न रहता है, उसे अनूचान कहते हैं ।
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५५. योनीहो देहगेहेऽपि सोडनगारः सतां मतः ॥ कल्प ४४, लो० ८६२ ५६. आत्मशुद्धिकरैर्यस्य न संग ः कर्मदुर्जनैः ।
स पुमान् शुचिराख्यातो नाम्बुसंप्लुतमस्तकः ॥ - कल्प ४४, ५७. धर्मकर्मफलेऽनीहो निवृत्तोऽधर्मकर्मणः ।
तं निर्मममुशन्तीह केवलात्मपरिच्छदम् ॥ - कल्प ४४, श्लो० ८६४ ५८. यः कर्म द्वितयातीतस्तं मुमुतुं प्रचक्षते । - कल्प ४४, श्लो० ८६५ ५९. निर्ममो निरहंकारो निर्मानमदमत्सरः ।
निन्दायां संस्तवे चैव समधीः शंसितव्रतः ॥ -कल्प ४४, श्लो० ८६६ ६०. योऽवगम्य यथाम्नायं तत्त्वं तत्त्वैकभावनः ।
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वाचंयमः स विज्ञेयो न मौनी पशुवन्नरः ॥ - कल्प ४४, श्लो० ८६७ ६१. श्रुते व्रते प्रसंख्याने संयमे नियमे यमे ।
यस्योच्चैः सर्वदा चेतः सोऽनूचानः प्रकीर्तितः ॥ —कल्प ४४,
लो० ८६३
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श्लो० ८६८
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