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________________ यशस्तिलककालीन सामाजिक जीवन जैनधर्म सिद्धान्ततः भी आयु के आधार पर आश्रमों का वर्गीकरण नहीं मानता। सोमदेव ने इस तथ्य को यशस्तिलक में प्रकारान्तर से स्पष्ट किया है।१७ परिवजित या संन्यस्त व्यक्ति परित्नजित या संन्यस्त हुए लोगों के लिए यशस्तिलक में अनेक नाम पाए हैं। ये नाम उनके अपने धार्मिक सम्प्रदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं १. आजीवक (४०६ उत्त० ) आजीवक सम्प्रदाय के साधुओं के साथ जैन श्रावक को सहालाप, सहावास तथा उनकी सेवा करने का निषेध किया गया है । ८ यशस्तिलक में आजीवकों का उल्लेख अत्यधिक महत्वपूर्ण है, इससे यह ज्ञात होता है कि दशवीं शताब्दी तक आजीवक सम्प्रदाय के साधु विद्यमान थे। आजीवक सम्प्रदाय के प्रणेता मंखलिपुत्त गोशाल भगवान् महावीर के समसामयिक तथा उनके विरोधी थे। जैनागमों में इसके अनेक उल्लेख मिलते हैं । १९ आजीवकों की अपनी कुछ विचित्र-सी मान्यताएँ थीं। गोशाल पूर्ण नियतिवाद में विश्वास करते थे। 'जो होना है वही होगा' यह नियतिवाद की फलश्रुति है । गोशाल का कहना था कि 'सत्वों ( जीवों ) के क्लेश का कोई हेतु नहीं है। बिना हेतु और बिना प्रत्यय के सत्व क्लेश पाते हैं, स्वयं कुछ नहीं कर सकते, दूसरे भी कुछ नहीं कर सकते । सभी सत्व भाग्य और संयोग के फेर में छह जातियों में उत्पन्न होते हैं और सुख-दुःख भोगते हैं। सुख-दुःख द्रोण से तुले हुए हैं, संसार में घटना-बढ़ना, उत्कर्ष-अपकर्ष कुछ नहीं होता ।'२° २. कर्मन्दी ( १३४, ४०८ ) यशस्तिलक में कर्मन्दी का दो बार उल्लेख है। इसका अर्थ श्रुतदेव ने तप किया है ।२१ पाणिनि ने कर्मन्द भिक्षुत्रों का उल्लेख किया है । २२ सम्भवतः जिस तरह पाराशर के शिष्य पाराशर्य, शुनक के शौनक आदि कहलाते थे उसी १७. ध्यानानुष्ठानशक्त्यात्मा युवा यो न तपस्यति । स: जराजर्जरान्येषां तपो विघ्नकरः परम् ॥ पृ० ७७, उत्त. १८. ...आजीवका दिभिः सहावासं सहालापं तत्सेवां च विवर्जयेत् | पृ० ४०६, उत्त. १६-२०. देखिए मेरा लेख- 'महावीर के समकालीन आचार्य,' 'श्रमण' मासिक, महावीर जयन्ती अंक, १९६१ २१. कर्मन्दीव तपस्वीव, वही, सं० टी. २२. कर्मन्दकृशाश्वादिनिः ।४।३१५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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