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गुणस्थान और कर्मसिद्धान्त
की ६७ कर्म-प्रकृतियों में से निम्नलिखित मात्र ३२ कर्म-प्रकृतियों का ही बन्ध इस गुणस्थान में होता है - १. देवगति नामकर्म, २. पञ्चेन्द्रिय-जाति नामकर्म, ३. वैक्रिय-शरीर नामकर्म, ४. तैजसशरीर नामकर्म, ५. कार्मणशरीर नामकर्म, ६. वैक्रियअङ्गोपांग नामकर्म, ७. वज्रऋषभनाराच संहनन नामकर्म, ८. समचतुरस्र संस्थान नामकर्म, ९. हुंडकसंस्थान नामकर्म, १०. वर्ण नामकर्म, ११. गन्ध नामकर्म, १२. रस नामकर्म, १३. स्पर्श नामकर्म, १४. देवानुपूर्वी नामकर्म, १५. शुभविहायोगति नामकर्म, १६. पराघात नामकर्म, १७. उपघात नामकर्म, १८. उच्छास नामकर्म, १९. उद्योत नामकर्म, २०. अगुरुलघु नामकर्म, २१. तीर्थङ्कर नामकर्म, २२. निर्माण नामकर्म, २३. त्रस नामकर्म, २४. बादर नामकर्म, २५. पर्याप्त नामकर्म, २६. प्रत्येक नामकर्म, २७. स्थिर नामकर्म २८. शुभ नामकर्म, २९. सुभग नामकर्म, ३०. सुस्वर नामकर्म, ३१. आदेय नामकर्म एवं ३२. यश:कीर्ति नामकर्म।
शेष गतित्रिक (देवगति को छोड़कर शेष तीन गति), आनुपूर्वीत्रिक (देवगति को छोड़कर), जातिचतुष्क, औदारिक द्विक, आहारक द्विक, पंच संहनन, संस्थान चतुष्क, अशुभ विहायोगति, आतप नामकर्म और स्थावर दशक इन ३५ कर्म-प्रकृतियों का बन्ध इसमें नहीं होता है।
गोत्रकर्म में मात्र उच्च गोत्रकर्म और अन्तराय कर्म में पाँचों की अन्तरायों का बन्ध इस गुणस्थान में सम्भव है। इस प्रकार इस गुणस्थान में क्रमश: ५+६+२+१५+१+३२+१+५ = ६७ कर्म-प्रकृतियों का बन्ध सम्भव है। सत्ता योग्य १४८ कर्म-प्रकृतियों में सम्भव-सत्ता की दृष्टि से तो इस गणस्थान में भी १४८ कर्म-प्रकृतियों की सत्ता मानी गयी है। यद्यपि अचरमशरीरी क्षायिक सम्यक्त्व वाले जीव में अनन्तानुबन्धी कषाय-चतुष्क और दर्शनत्रिक का क्षय होने से १४१ कर्म-प्रकृतियों की सत्ता हो सकती है। जो जीव चरम शरीरी हैं उनमें मनुष्य आयु को छोड़कर तीन आयु की भी सत्ता नहीं रहती। इसलिये उनकी अपेक्षा से इस गुणस्थान में भी १३८ कर्म-प्रकृतियों की सत्ता कही गयी है।
जहाँ तक उदय और उदीरणा का प्रश्न है, देशविरत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान में ८७ कर्म-प्रकृतियों की ही उदय और उदीरणा सम्भव मानी गयी है। इसमें ज्ञानावरणीय की पाँच, दर्शनावरणीय की नौ और वेदनीय की दो, जो उदय योग्य कर्म-प्रकृतियाँ हैं उन सभी का उदय सम्भव है। मोहनीय कर्म की उदय योग्य २८ कर्म-प्रकृतियों में से इस गुणस्थान में १८ कर्म-प्रकृतियों का ही उदय सम्भव होता है। इसमें अनन्तानुबन्धी कषायचतुष्क और अप्रत्याख्यानी कषायचतुष्क तथा मिथ्यात्व मोह और मिश्र मोह इन दस कर्म-प्रकृतियों का उदय नहीं होता। आयुष्य कर्म में भी मनुष्य आयु अथवा तिर्यञ्च आयु का ही उदय सम्भव
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