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गुणस्थान सिद्धान्त : एक विश्लेषण
आत्मा जिन चार शक्तियों (लब्धियों ) को उपलब्ध कर लेता है, वे हैं ( क ) क्षयोपशम : पूर्वबद्ध कर्मों में कुछ कर्मों के फल का क्षीण हो जाना अथवा उनकी विपाक शक्ति का शमन हो जाना,
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(ख) विशुद्धि,
( ग ) देशना : ज्ञानीजनों के द्वारा मार्गदर्शन प्राप्त करना और
(घ) प्रयोग : आयुष्य कर्म को छोड़कर शेष कर्मों की स्थिति का एक कोड़ा - क्रोड़ी सागरोपम से कम हो जाना ।
जो आत्मा इस प्रथम यथाप्रवृत्तिकरण नामक ग्रन्थि-भेद की क्रिया में सफल हो जाता है, वह मुक्ति की यात्रा के योग्य हो जाता है और जल्दी या देर से मुक्ति अवश्य प्राप्त कर लेता है । जो सिपाही शत्रु सेना के सामने डटने का साहस कर लेता है वह कभी न कभी तो विजय-लाभ कर ही लेता है। विजय यात्रा के अग्रिम दो चरण अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण की अवस्था में आत्मा अशुभ कर्मों का अल्प स्थिति का एवं रुक्ष बन्ध करती है। यह नैतिक चेतना के उदय की अवस्था है। यह एक प्रकार की आदर्शाभिमुखता है।
२. अपूर्वकरण : यथाप्रवृत्तिकरण के द्वारा आत्मा में नैतिक चेतना का उदय होता है; विवेक-बुद्धि और संयम - भावना का प्रस्फुटन होता है । वस्तुतः यथाप्रवृत्तिकरण में वासनाओं से संघर्ष करने के लिये पूर्व-पीठिका तैयार होती है । आत्मा में इतना नैतिक साहस ( वीर्योल्लास ) उत्पन्न हो जाता है कि वह संघर्ष की पूर्व तैयारी कर वासनाओं से युद्ध करने के लिये सामने डट जाती है। कभी शत्रु को युद्ध के लिये ललकारने का भी प्रयास करती है, लेकिन वास्तविक संघर्ष प्रारम्भ नहीं होता । अनेक बार तो ऐसा प्रसंग आता है कि वासनारूपी शत्रुओं के प्रति मिथ्यामोह के जागृत हो जाने से अथवा उनकी दुर्जेयता के अचेतन भय के वश अर्जुन के समान यह आत्मा पलायन या दैन्यवृत्ति को ग्रहण कर मैदान से भाग जाने का प्रयास करती है, लेकिन जिन आत्माओं में वीर्योल्लास या नैतिक साहस की मात्रा का विकास होता है वे कृतसंकल्प हो संघर्षरत हो जाती हैं और वासनारूपी शत्रुओं के राग और द्वेषरूपी सेनापतियों के व्यूह का भेदन कर देती हैं। भेदन करने की क्रिया ही अपूर्वकरण है। राग और द्वेषरूपी शत्रुओं के सेनापतियों के परास्त हो जाने से आत्मा जिस आनन्द का लाभ करती है, वह सभी पूर्व अनुभूतियों से विशिष्ट प्रकार का या अपूर्व होता है । वस्तुतः इस अवस्था में मानसिक तनाव और संशय पूरी तरह समाप्त हो जाते हैं, अतः आत्मा को एक अनुपम शान्ति का अनुभव होता है, यही अपूर्वकरण है । अब आत्मा अपनी शक्ति को बटोरकर विकास के अग्रिम चरण के लिये प्रस्थित हो जाती है।
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