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क्रम
४.
८.
तत्त्वार्थसूत्र
मिथ्यात्व
सम्यग्दृष्टि
श्रावक
विरत
अनन्तवियोजक
दर्शनमोह क्षपक ( चारित्रमोह )
उपशमक
कसायपाहुड
३
मिच्छादिट्ठि ( मिथ्यादृष्टि )
सम्मा-मिच्छाइट्ठो ( मिस्सगं )
सम्माइट्ठी ( सम्यग्दृष्टि ) अविरदीए
विरदाविरदे ( विरत - अविरत )
देसविरयी ( सागार ) संजमासंजम
विरद ( संजम )
दंसणमोह उवसामगे ( दर्शन मोह
उपशामक )
दंसणमोह खवगे ( दर्शन मोह - क्षपक ) चरित्तमोहस्स उपसामगे
( उवसामणा )
समवायांग/ षट्खण्डागम
४
मिच्छादिट्ठि ( मिथ्यादृष्टि )
सास्वादन सम्यग्दृष्टि ( सासायण - सम्मादिट्ठी )
सम्मा-मिच्छादिट्ठी
( सम्यक्-मिथ्यादृष्टि )
अविरय सम्मादिट्ठी
विरयाविरए ( विरत - अविरत )
पमत्तसंजए
अपमत्तसजए
निअट्टिबायरे
अनि अट्टिबायरे
तत्त्वार्थ की टीकाएँ
५
मिथ्यादृष्टि
सास्वादन
सम्यक्-मिथ्यादृष्टि ( मिश्रदृष्टि )
सम्यग्दृष्टि
प्रमत्तसंयत
अप्रमत्तसंयत
अपूर्वकरण अनिवृत्तिकरण
तत्त्वार्थसूत्र में गुणस्थान सिद्धान्त के बीज
१७