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श्रावकाचार
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हिंसा के प्रकार
हिंसा के वास्तविक स्वरूप को समझने के लिए उसके विभिन्न प्रकारों पर भी दष्टिपात करना जरूरी है। अगर वास्तविक रूप से देखें तो हिंसा हर तरह से हिंसा ही होती है, परन्तु विश्लेषणात्मक दृष्टि से इसके अनेक भेद भी किये जा सकते हैं :
"संतिमे तउ आयाणा जेहिं कीरइ पावगं अभिकम्माय पेसाय, मणसा अणुजाणिया"
सूत्रकृतांगसूत्र में करना, करवाना व मन से अनुमोदन करना-ये तीन प्रकार की हिंसा बतलाई है ।' उपासकदशांगसूत्र व दशवेकालिकसूत्र में भी कृत, कारित एवं अनुमोदित-तीन प्रकार की हिंसा बताई है। उपासकदशांगसूत्र में आनन्द श्रावक व्रतों को ग्रहण करते समय कृत और कारित हिंसा का त्याग करता है। अमितगतिश्रावकाचार में हिंसा के १०८ प्रकार बताये गये हैं। वे लिखते हैं कि सरंभ, समारम्भ और आरम्भ रूप तीन प्रकार की हिंसा; मन, वचन, काय रूप तीन योगों से कृत, कारित व अनुमोदनारूप तीन करण से; क्रोध, मान, माया, लोभ रूप चार कषायों से निरन्तर होती रहती है । इनको परस्पर गुणा करने पर १०८ संख्या हो जाती है। दर्शनसार में हिंसा के जान-बूझ कर हुई तथा अनजान में हुई-ऐसे दो भेद किये हैं। बाद में इन्हीं के उद्यमी, आरम्भी एवं विरोधी तीन भेद किये हैं। आधुनिक आचारग्रंथों में हिंसा के चार भेदों का उल्लेख मिलता है, यहाँ संकल्पी, आरम्भी, उद्योगी एवं विरोधी ये चार भेद किये हैं।
१. सूत्रकृतांगसूत्र, १/२/२६ २. क. "तप्पढमाए थूलगं पाणाइवायं पच्चक्खाइ जावज्जीवाए दविहं तिविहेणं
न करेमि न कारवेमि" उवासगदसाओ, १/१३ ख. दशवैकालिकसूत्र, ६/१० । ३. सरंभ समारम्भारम्भर्योग कृतकारितानुमतैः ।
सकषायैरम्भस्तैतरसा सम्पद्यते हिंसा ॥-अमितगतिश्रावकाचार, ६/१२ . ४. सोगानी, के. सी., इथिकल डाक्ट्रीन आफ जैनिज्म, पृष्ठ ७७ ५. क. शास्त्री, देवेन्द्रमुनि-जैन आचार सिद्धान्त और स्वरूप, पृष्ठ २९७
ख. मुनि पुष्कर-श्रावक धर्म-दर्शन, पृष्ठ ११७
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