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________________ ८० उपासकदशांग : एक परिशीलन उपासकदशांगसूत्र श्रावक-आचार का प्रतिपादन करने वाला प्राचीन आगमों का प्रतिनिधि ग्रन्थ है। इसके प्रथम अध्ययन में भगवान महावीर से धर्मोपदेश श्रवण करने के पश्चात् आनन्द श्रावक ने कहा कि मैं अन्य राजा-महाराजाओं की तरह संसार-त्याग कर मुनिव्रत ग्रहण करने में असमर्थ हैं, परन्तु मैं आपके पास पाँच अणव्रत तथा सात शिक्षावत मूलक बारह प्रकार का गृहस्थ धर्म स्वीकार करना चाहता हूँ।' इस कथन के उपरान्त इस ग्रन्थ में प्रत्येक अणुव्रत का स्वरूप बताया गया है, जिसका वर्णन आगे किया जा रहा है: भगवतीआराधना में प्राणवध, मषावाद, चोरी, परदारागमन तथा परिग्रह के स्थूल त्याग को अणुव्रत कहा है। रत्नकरण्डकश्रावकाचार में आचार्य समन्तभद्र ने हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह इन पाँच स्थूल पापों के त्याग को अणुव्रत कहा है। आचार्य उमास्वाति आदि अनेक विद्वानों ने हिंसादि पांच पापों के एक देश त्याग को अणुव्रत कहा है। श्रावकप्रज्ञप्ति में आचार्य हरिभद्रसूरि ने स्थूल प्राणीवधादि से विरत होने को अणुव्रत माना है।" महापुराण में आचार्य जिनसेन ने स्थूल हिंसादि दोषों से विरक्ति को अणुव्रत कहा है।' सागारधर्मामृत में पं० १. पंचाणुव्वइयं सत्त सिक्खावइयं दुवालसविहं गिहिधम्म पडिवज्जिस्सामी उवासगदशाओ, १/१२ २. पाणवध-मुसावादा-दत्तादान परदारगमणेहिं । अपरिमिदिच्छादो वि अ अणुव्वयाइ विरमणाइ। -भगवतीआराधना, गाथा-२०८० ३. प्राणातिपातवितथ व्याहारस्तेय काम मूभ्यिः ।। स्थूलेभ्यः पापेभ्यः व्युपरमणमणुव्रतं भवति । -रत्नकरण्डकश्रावकाचार, ५२ ४. क. तत्त्वार्थसूत्र, ७/१-२ ख. तत्त्वार्थभाष्यवृत्ति, ७/२ ग. तत्त्वार्थवार्तिक, ७/२-२ ग. तत्त्वार्थभाष्य, ७/२ ङ. तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक, ७/२ च. तत्त्वार्थश्रुतसागरीवृत्ति, ७/२ __ छ. त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र, १/१/१८८ ५. थूल पाणि (ण) वहस्स (स्स) विरइ, दुविही अ सो वहो होइ संकप्पारंभेहिं य वज्जइ, संकप्पओ विहिणा"-श्रावक प्रज्ञप्ति, १०७ ६. महापुराण, ३९/४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002128
Book TitleUpasakdashanga aur uska Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Kothari
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1988
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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