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________________ श्रावकाचार अन्य ग्रन्थों में श्रावकाचार आगमों के परवर्ती मूल ग्रन्थों में आचार्य उमास्वाति के तत्त्वार्थ सूत्र में श्रावक के बारह व्रतों का वर्णन है जिनमें पाँच अणुव्रत, तीन गुणव्रत, चार शिक्षाव्रतों का उल्लेख है । इसके साथ ही इनके अतिचारों का भी वर्णन है । " आचार्य हरिभद्र ने धर्म-बिन्दु- प्रकरण में जैन मार्गानुगामियों के पैंतीस गुणों का सर्वप्रथम वर्णन किया है। आचार्य हेमचन्द्र ने योगशास्त्र में पाँच अणुव्रत, तीन गुणव्रत, चार शिक्षाव्रतों के साथ-साथ श्रावक के दैनिक षट्कर्म और तीन मनोरथों का भी वर्णन किया है । सुविहित आचार्य जिनेश्वर ने स्थानप्रकरण में षट्कर्मों का उल्लेख किया है । आचार्य जवाहर ने गृहस्थ धर्म के तीन खण्डों में पाँच अणुव्रत, तीन गुणव्रत, चार शिक्षाव्रतों के साथ षट्आवश्यकों का वर्णन किया है। महासती उज्ज्वल कुंवर ने श्रावक धर्म में श्रावक के बारह व्रतों का वर्णन किया है । ४ बारह व्रत पाँच अणुव्रतों के सम्बन्ध में कहीं भी मतभेद नहीं है । उनके नाम भेद अवश्य प्राप्त होते हैं | आचार्य कुन्दकुन्द ने अपने चारित्रप्राभृत में पाँचवें अणुव्रत का नाम 'परिग्गहारंभ परिमाण' रखा है एवं चतुर्थ अणुव्रत का नाम 'परपिम्म परिहार' जिसका अर्थ परस्त्रीत्याग है तथा प्रथम अणुव्रत का नाम 'स्थूलकायवधपरिहार' रखा है ।" आचार्य समन्तभद्र ने रत्नकरण्डकश्रावकाचार' में चौथे अणुव्रत का नाम 'परदारनिवृत्ति' और 'स्वदार सन्तोष' रखा है, एवं पाँचवें अणुव्रत का नाम 'परिग्रह परिमाण' के साथ 'इच्छापरिमाण' भी रखा है । आचार्य रविषेण ने चौथे व्रत का नाम १. तत्त्वार्थसूत्र, ७ २. क. योगशास्त्र, २ ख. योगशास्त्र, ३ ३. क. गृहस्थधर्म - आचार्य जवाहर, ३१, ३२ वीं किरण ख. वही, ३३ वीं किरण, ३/९-८५ ग. वही, ३/८९-२०९ घ. वही, ३ / २१०-२७० ४. महासती उज्ज्वलकुंवर - श्रावकधर्मं ५. चारित्रसार, गाथा २३ ६. रत्नकरण्ड श्रावकाचार, श्लोक १३, १५ Jain Education International ७७ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002128
Book TitleUpasakdashanga aur uska Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Kothari
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1988
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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