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________________ ७६ उपासकदशांग : एक परिशीलन स्वतन्त्र परिभाषाओं का प्रायः अभाव है। स्वयं उपासकदशांग में भी उपासक किसे कहते है इस प्रकार की कोई परिभाषा नहीं है, फिर भी उपासक के कार्यों और उसकी जीवन-पद्धति के विवरण अवश्य प्राप्त होते हैं, जिनका मूल्यांकन आगे किया जा रहा है। श्रावकाचार का स्वरूप जैन साहित्य में श्रमण आचार को प्रधानता दी गयी है, परन्तु आम लोगों के लिये, जो इन व्रतों को पूर्णतया पालन नहीं कर पाते हैं, मध्यम मार्ग के रूप में श्रावक-आचार का भी कथन हमारे पूर्वाचार्यों व उत्तरवर्ती मनीषियों ने किया है। श्रावक-आचार के मूल रूप से आठ मूलगुण, बारह अणुव्रत, पैंतोस गुण, ग्यारह प्रतिमाएं आदि मुख्य हैं, जिन्हें क्रमिक रूप से यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है :आगमों में श्रावकाचार अर्धमागधी आगम साहित्य के स्थानांगसूत्र में आगार धर्म के अन्तर्गत श्रावक के तीन मनोरथों का चिन्तन हआ है।' इसी ग्रन्थ में श्रावकों के ५ अणुव्रतों का भी नामोल्लेख हुआ है ।२ समवायांगसूत्र में श्रावक की ग्यारह प्रतिमाओं का वर्णन प्राप्त होता है। उपासकदशांग, जो श्रावकाचार का मूल ग्रन्थ है इसमें आनन्द श्रावक भगवान महावीर से पाँच अणुव्रत, और सात शिक्षाव्रत ग्रहण करता है, बाद में ग्यारह प्रतिमाओं को धारण कर सल्लेखना स्वीकार करता है। विपाकसूत्र में सुबाहुकुमार द्वारा श्रावक के बारह व्रत ग्रहण करने का वर्णन है।५ दशाश्रुतस्कन्ध में श्रावक की ग्यारह प्रतिमाओं का वर्णन है।' आवश्यकसूत्र में षट् आवश्यक, बारह व्रतों के अतिचारों का वर्णन है।' १. स्थानांगसूत्र, ३/४/२१० २. स्थानांगसूत्र, ५/१/३८९ ३. समवायांगसूत्र, ११/५ ४. उवासगदसाओ, १/१४-७५ ५. विपाकसूत्र, २/१-१० ६. दशाश्रुतस्कन्ध, ६/१-२ ७. आवश्यकसूत्र-मुनि पुण्यविजय, आश्वास ६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002128
Book TitleUpasakdashanga aur uska Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Kothari
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1988
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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