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________________ ७२ उपासकदशांग : एक परिशीलन (क) "तए णं से आणंदे समणोवासए उवासग-पडिमाओ उवसंपज्जिताणं विरहइ"" (ख) “दुवालसविहिं गिहि-धम्म पडिवज्जिस्सामि"२ । (ग) “तमेव धम्म दुविहं आइक्खइ-अगारधम्मं, अणगारधम्म च"३ (घ) “जहा आणंदो तहा णिग्गओ तहेव सावय-धम्म पडिवज्जइ" ___ अन्तकृत्दशांगसूत्र में सुदर्शन श्रेष्ठी की कथा के प्रसंग में श्रमणोपासक शब्द का प्रयोग हुआ है। विपाकसूत्र व उत्तराध्ययनसूत्र में क्रमशः श्रमणोपासक शब्द का उल्लेख है । शौरसेनी आगम ग्रन्थों में आचार्य कुन्दकुन्द ने चारित्रपाहुड ग्रन्थ में श्रावकों के लिए 'सागार' शब्द का प्रयोग किया है । इसके बाद रयणसार में 'श्रावक' शब्द का उल्लेख मिलता है। __ सागारधर्मामृत में पं० आशाधर ने श्रावक के लक्षण बतलाते हुए कहा है कि पंच परमेष्ठी का भक्त, प्रधानता से दान और पूजन करने वाला, भेद विज्ञान रूपी अमृत को पीने का इच्छुक तथा मूल गुण और उत्तरगुणों को पालन करने वाला श्रावक कहलाता है।' १. उवासगदसाओ-मुनि मधुकर, १/७० २. वही, १/१२ ३. वही, १, पृष्ठ २० ४. वही, २ पृष्ठ ८५ ५. “से मोग्गर पाणी जक्खे सुदंसणं समणोवासयं अदूरसामंतेणं वीईवयमाण" -अन्तगडदसाओ (सुत्तागमे), वर्ग ६, अध्याय ३, पृष्ठ ११९७ ६. "उवासगाण पडिमासु भिक्खुण पडिमासु य जे भिक्खु जयइ णिच्चसेन अच्छइ मण्डले" -उत्तराध्ययनसूत्र-मुनि पुण्यविजय, सूत्र ३१,१९ ७. "दुविह संजमचरणं सायारं तह हवे णिरायार" -चारित्रपाहुड-कुन्दकुन्द, गाथा २२ ८. सागारधर्मामृत -पं० आशाधर, १/१५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002128
Book TitleUpasakdashanga aur uska Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Kothari
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1988
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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