________________
७१
समवायांगसूत्र में श्रावकों को 'श्रमणभूत' शब्द से सम्बोधित किया है । यहीं पर 'उपासक' शब्द भी प्रयुक्त हुआ है जहाँ ग्यारह प्रतिमाओं का उल्लेख किया गया है ।"
श्रावकाचार
भगवतीसूत्र में गृहस्थ श्रावकों के लिए 'सागार' एवं 'श्रमणोपासक ' शब्द प्रयुक्त है । कहीं-कहीं पर 'उपासक' और 'श्रावक' शब्द भी प्राप्त होता है।
ज्ञाताधर्मकथा में 'श्रमणोपासक' शब्द ही अधिक प्रयुक्त हुआ है । * किन्तु एक स्थान पर गृहस्थ के लिए अगार शब्द का प्रयोग हुआ है, जहां श्रावक के विनय को अगार विनय कहा गया है ।
उपासकदशांगसूत्र गृहस्थ धर्म का प्रतिपादन करने वाला प्रतिनिधि ग्रन्थ है । इस ग्रन्थ में गृहस्थ धर्म के लिए गिहिधम्म, सावयधम्म, अगारधम्म, उवासगधम्म, आदि अनेक शब्दों का प्रयोग हुआ है । इस तरह ग्रन्थ में उपासक, श्रमणोपासक, गिहि, अगार, सावय ये शब्द गृहस्थ के लिए प्रयुक्त हुए हैं । यथा
१. क. " एवकारस उवासग पडिमाओ पण्णत्ता तंजहा - दंसणसावए "
ख. " समणभूए आविभवइ समणाउसो "
- समवाए ( सुत्तागमे ), पृष्ठ, ३२४
- समवाए ( सुत्तागमे ) पृष्ठ, ३२४
२. क. " समणोवासगस्स णं भंते सामाइय कडस्स समणोवासए"
Jain Education International
- ठाणं ( सुत्तागमे ), ७/१ पृष्ठ, ५०९
ख. " गोयमा दसविहे पण्णत्ते तंजहा - सागारमणागरं"
-- ठाणं ( सुत्तागमे ) ७ / २, पृष्ठ ५१३ ३. " सोच्चा णं केवलिस्स वा केवलिसावगस्स वा केवलिसावियाए वा केवलि - उवासगस्स वाकेवलिउवासियाए वा
- भगवई ( अंगसुत्ताणि, भाग २ ), ५ / ९६
४. " तओ णं अहं देवाणुप्पिआणं अंतिए पच्चाणुव्वइयं जाव समणोवासए -ज्ञाताधर्मकथा - भारिल्ल, शोभाचन्द्र, अध्याय- ५, पृष्ठ १९०
५. " से वि य विणए दुविहे पण्णत्ते तंजहा - अगार विजय अणगार विजय" -ज्ञाताधर्मकथा - भारिल्ल, शोभाचन्द्र, अध्याय - ५, पृष्ठ १९३
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org