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________________ ६० पिपासित परव्यपदेश es उपासक दशांग : एक परिशीलन पिवासिया परववएसे संवत्सरा तलवर = ७. दो स्वरों का मध्यवर्ती 'य' प्रायः ज्यों का त्यों बना रहता है व कहीं-कहीं पर 'त' भी हो जाता है ।' यथा पैयाला पेयाला ( उवा० सू० ४४, ४५) नियय नियग (उवा० सू० १६८, १६९) = =1 ८. दो स्वरों के मध्यवर्ती 'व' के स्थान पर 'व' 'त' एवं 'य' पाया जाता हैं । = Jain Education International = 25 = शब्द के आदि, मध्य व संयोग में भी जैन महाराष्ट्री की तरह स्थिर रहता है । यथा श्रमणेन समणेण ( उवा० सू० ८) भक्षणता भक्खणया ( उवा० सू० ५१) = - ( उवा० सू० २४२ ) ( उवा० सू० ५६ ) संवच्छरा तलवर १०. 'स' 'श' एवं 'ष' की जगह सर्वत्र 'स' पाया जाता है । यथा पुरुषं ( उवा० सू० १३६) गोशालो (उवा० सू० २१८) = ( उवा० सू० २४१ ) ( उवा ० सू० १२) पुरिस गोसाले = सर्वत्र 'ण' की जगह 'ण' एवं 'न' ११. 'यथा' व 'यावत' शब्द में 'य' का लोप व 'ज' दोनों मिलते हैं । ४ जैन महाराष्ट्री में भी यही रूप बनता है । यथा यावज्जीवं यथासुखं अहासुहं १. “जन्द्य-यां-यः” प्राकृत व्याकरण - आचार्य हेमचन्द्र, ४/२९२ २. "श-षोः सः " प्राकृत व्याकरण-आचार्य हेमचन्द्र, १/२६० ३. शास्त्री, नेमिचन्द्र - अभिनव प्राकृत व्याकरण, पृष्ट ४४२ ४. शास्त्री, नेमिचन्द्र -- अभिनव प्राकृत व्याकरण, पृष्ठ ४४२ जावज्जीवाए ( उवा० सू० १३, १४, १५, १७, १८) ( उवा० सू० १२) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002128
Book TitleUpasakdashanga aur uska Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Kothari
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1988
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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