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________________ उपासकदशांग का रचनाकाल एवं भाषा ५७ मगध में मागधी व शूरसेन में शौरसेनी भाषा प्रचलित थी, अतः दोनों के मध्यवर्ती प्रदेश अयोध्या में यह भाषा प्रचलित होने के कारण अर्द्धमागधी नाम दिया गया भगवान महावीर के शिष्य मगध, मिथिला, कौशल आदि अलग-अलग प्रदेश, वर्ण व जाति के थे, अतः स्वाभाविक है कि देशी भाषाओं का मिश्रण हुआ ही होगा । पिशेल के अनुसार जेनों ने अर्द्धमागधी को अथवा वैयाकरणों द्वारा वर्णित आर्षभाषा को मूल माना है जिससे अन्य बोलियाँ या भाषाएँ निकली हैं ।' मुनि नथमल की मान्यता है कि देवधिगणि क्षमाश्रमण ने आगमों का नया संस्करण वल्लभी वाचना में किया, उसके बाद महाराष्ट्र में जैन श्रमणों का विहार होने लगा उस स्थिति में आगम सूत्रों की भाषा महाराष्ट्र से प्रभावित हुए बिना नहीं रही । आचार्य हेमचन्द्र का विहार स्थल भी गुजरात रहा जो कि महाराष्ट्र का समीपवर्ती प्रदेश है । उन्होंने भी प्रचलित प्रयोगों का अपने व्याकरण शास्त्र में उपयोग किया जिसे आर्ष प्रयोग के रूप में आख्यात किया । अतः महाराष्ट्री अर्धमागधी के बहुत निकट मानी जाती है | २ अर्धमागधी की भाषात्मक विशेषताएँ प्राकृत भाषा के विभिन्न भेदों व उनकी विशेषताओं का वर्णन विभिन्न वैयाकरणों ने किया है लेकिन किसी भी प्राचीन वैयाकरण ने स्वतन्त्र रूप से अर्धमागधी प्राकृत की विशेषताओं का उल्लेख कहीं नहीं किया है, क्योंकि अर्धमागधी प्राकृत की विशेषताएँ कोई स्वतन्त्र रूप से अपना अस्तित्व नहीं रखती । इसकी प्रायः सभी विशेषताएं मागधी, शौरसेनी व महाराष्ट्री के सम्मिश्रण से निर्मित है । अतः इसका अलग से उल्लेख करना इन ग्रन्थकारों ने उचित नहीं समझा । अर्धमागधी को प्रमुख विशेषताओं का परिचय पिशेल के प्राकृत भाषाओं के व्याकरण, नेमिचन्द्र शास्त्री के अभिनव प्राकृत व्याकरण, पं० हरगोविन्ददास के पाइअसहमहणवो की भूमिका व डॉ० कोमल चन्द्र जैन के प्राकृत प्रवेशिका नामक ग्रन्थों में प्राप्त होता है । १. पिशेल - प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ २५-२६ २. मुनि नथमल - 'आर्ष प्राकृत स्वरूप व विश्लेषण' नामक लेख, संस्कृत प्राकृत जैन व्याकरण व कोष की परम्परा, पृष्ट २३५-२३६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002128
Book TitleUpasakdashanga aur uska Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Kothari
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1988
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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