________________
( vi )
तृतीय अध्याय में 'उपासकदशांग को विषयवस्तु एवं विशेषताएँ' प्रतिपादित की गयी हैं । इस ग्रन्थ में आनन्द, कामदेव, चुलनीपिता, सुरादेव, चुल्लशतक, कुण्डकौलिक, सकडालपुत्र, महाशतक, नन्दिनीपिता एवं सालिहिपिता इन दस श्रावकों के साधनामय जीवन की झांकी प्रस्तुत की गयी है । उपासकदशांगसूत्र की विषयवस्तु के मूल्यांकन से यह ज्ञात होता है कि इसमें विभिन्न व्यक्तियों के उदात्त चरितों को प्रस्तुत किया गया है ।
श्रावक सामाजिक दृष्टि से सम्पन्न होते हुए भी आध्यात्मिक साधना के लिए पूर्णरूप से समर्पित थे । संसार में रहते हुए आत्मकल्याण के मार्ग में अग्रसित होना इन श्रावकों की विशेषता थी । इससे साधक को यह प्रेरणा मिलती है कि विभिन्न परिस्थितियों और संकटों के होते हुए भी आत्म साक्षात्कार किया जा सकता है । इस अध्याय में ग्रन्थ को साहित्यिक सुषमा को भी रेखांकित किया गया है। विभिन्न साधकों का जो काव्यात्मक वर्णन इस ग्रन्थ में प्राप्त है वह भारतीय साहित्य की काव्यमय भाषा को समझने के लिए आधार हो सकता है। कथा वस्तु में तार्किक संवादों और मानव मनोविज्ञान का जो समावेश किया गया है, उसका मूल्यांकन भी इस अध्याय में प्रस्तुत किया गया है ।
शोध ग्रन्थ के चतुर्थ अध्याय में 'उपासकदशांग का रचना काल एवं भाषा स्वरूप' का विवेचन प्रस्तुत किया गया है । विभिन्न प्रमाणों व साक्ष्यों से यह प्रमाणित किया गया है कि श्रमणाचार के आचारांग आदि ग्रन्थों के साथ-साथ श्रावकाचार के ग्रन्थों का भी निर्माण हुआ होगा, जिससे उपासकदशांग का रचना काल ईस्वी पूर्व द्वितीय शताब्दी से ईसा की प्रथम शताब्दी के मध्य माना जाना चाहिए । इसी ग्रन्थ में उपासकदशांग का भाषात्मक विवेचन भी प्रस्तुत किया गया है । सर्वप्रथम प्राकृत भाषा और अर्द्धमागधी के स्वरूप को स्पष्ट कर उसकी विशेषताएँ प्रस्तुत की गयी हैं। उसके बाद उन विशेषताओं को उपासकदशांग में खोजकर संदर्भ सहित प्रस्तुत किया गया है । इसमें यह भी स्पष्ट किया गया है कि उपासकदशांग में केवल अर्द्धमागधी भाषा का ही प्रयोग नहीं है अपितु महाराष्ट्री प्राकृत के भी कई रूप प्राप्त होते हैं । ग्रन्थ की भाषा को स्पष्ट करने के लिए इस अध्याय में विभिन्न चार्टों के माध्यम से संज्ञा, सर्वनाम, धातुरूप, कृदन्त प्रयोग आदि के विभिन्न शब्दों को संदर्भ सहित प्रस्तुत किया गया है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org