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________________ उपासकदशांग : एक परिशीलन दशांग श्रावक आचार का प्रथम ग्रन्थ है क्योंकि शेष सभी श्रावक-आचार सम्बन्धी ग्रन्थ और उल्लेख ईसा की प्रथम-द्वितीय शताब्दो के बाद के ही हैं। अतः प्रतिपाद्य विषय-वस्तु की दृष्टि से इसे ईसा पूर्व अथवा ईसा की प्रथम शताब्दी के आसपास रखा जाना चाहिए। यह बात अलग है कि कालान्तर में परिवर्तन या पाठ प्रक्षेप हुए हैं किन्तु इसकी विषयवस्तु तो निश्चित ही प्राचीन स्तर की है। जहाँ तक उपासकदशांग के बाह्य साक्ष्यों का प्रश्न है, इसका सर्वप्रथम उल्लेख हमें स्थानांग में मिलता है। स्थानांग के बाद समवायांग और नन्दीसूत्र में भी इसके उल्लेख प्राप्त होते हैं। स्थानांगसूत्र में दशा पद के अन्तर्गत दस अध्ययन वाले दस आगम कहे गये हैं। जिनमें-कर्मविपाकदशा, उपासकदशा, अन्तकृत्दशा, अनुत्तरोपपातिकदशा, आचारदशा, प्रश्नव्याकरणदशा, बंधदशा, द्विगृद्धिदशा, दीर्घदशा एवं साक्षेपिक दशा हैं। जिनमें छः दशाओं का परिचय वृत्तिकार ने दिया है और शेष को ज्ञात नहीं करके छोड़ दिया है। इसी ग्रन्थ में उपासकदशांग के दस अध्ययनों की सूची दी है जहाँ-आनन्द, कामदेव, चुलिनीपिता, सुरादेव, चुल्लशतक, कुण्डकौलिक, सद्दालपुत्त, महाशतक, नन्दिनीपिता और लेकियापिता के नाम हैं । समवायांग व नन्दीसूत्र में भी इसके नाम तथा दस अध्ययनों के होने का उल्लेख मिलता है। ___ उपासकदशांग के काल निर्धारण के लिए यह देखना होगा कि इन तीनों ग्रन्थों में कौन सा उल्लेख प्राचीनतम है। यदि हम अन्य दशाओं और आगम ग्रन्थों के सन्दर्भ में इन तीनों की तुलना करें तो स्पष्ट हो जाता है कि इनमें प्राचीनतम उल्लेख स्थानांग का ही है। इसका आधार यह है कि जहाँ अन्तकृत्दशा के विवरण का प्रश्न है, स्थानांग में उसके मात्र दस अध्ययनों का ही उल्लेख है। समवायांग सात वर्गों का उल्लेख करता है और नन्दी आठ वर्गों का उल्लेख करता है। इससे स्पष्ट ऐसा लगता है कि जैसे-जैसे अन्तकृत्दशांग की विषयवस्तु बदलती गयी, वैसे-वैसे उसके विषयवस्तु-सम्बन्धी विवरण भी बदलते गये और इनमें प्राचीनतम विवरण स्थानांग का ही लगता है क्योंकि स्थानांग इसके नाम के साथ लगे हुए दशा शब्द का सार्थक विवरण देता १. ठाणं-मुनि नथमल, १० वाँ स्थान । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002128
Book TitleUpasakdashanga aur uska Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Kothari
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1988
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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