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उपासकदशांग : एक परिशीलन
कथानकों में मानव मनोविज्ञान का समावेश-उपासकदशांगसूत्र की विभिन्न कथाओं में मानव मनोविज्ञान का सफल चित्रण हुआ है। इससे यह पता चलता है कि एक पात्र दूसरे पात्र को अपने अनुकूल बनाने के लिए किस स्तर तक जाकर प्रयत्न करता है। सकडालपुत्र जब गोशालक की विचार-धारा से विमुख होकर महावीर का अनुयायी बन जाता है तब गोशालक उस सकडालपुत्र को पुनः अपना अनुयायी बनाने के लिए मनोविज्ञान का सहारा लेता है और महावीर की प्रशंसा कर उसके मानस को अपने अनुकूल बनाने की चेष्टा करता है, उसी क्रम में सकडालपुत्र भी तदनुरूप आचरण कर यह स्पष्ट कर देता है कि उसके लिए महावीर द्वारा बताया गया रास्ता ही सही है। दोनों एक-दूसरे के मनोभावों को समझकर जिस तरह प्रश्नोत्तर करते हैं, वह मानव मनोविज्ञान का एक उपयुक्त उदाहरण है। इसी तरह रेवती अपने पति महाशतक को अपने मनोभावों के अनुरूप ढालने के लिए तदनुकूल मानव मनोविज्ञान का सहारा लेती है, यद्यपि वह असफल होती है, किन्तु उसके स्वभाव को समझने के लिए यह घटना काफी है। ऐसे
और भी प्रसंग हैं, जिससे कथानक में मानव मनोविज्ञान की विशेषता दृष्टिगोचर होती है।
इस प्रकार उपासकदशांगसूत्र की कथावस्तु और उसकी विशेषताएँ जैनधर्म में साधना के स्वरूप को समझने के लिए एक आधार भूमिका का निर्माण करती है।
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