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________________ उपासकदशांग : एक परिशीलन भी यह बताता है कि उपासकदशांग में ये चरित्र आत्मविकास की चरमस्थिति में पहुंच गये थे। २. परिवार में रहकर आत्मकल्याण-उपासकदशांगसूत्र से स्पष्ट है कि व्यक्ति परिवार व समाज में रहकर भी परम आत्म-तत्त्व को प्राप्त कर सकता है । सिद्ध अवस्था में जाने के लिए साधु होना जरूरी नहीं है। उपासकदशांग की मूल विशेषता ही श्रमण-जीवन के समकक्ष श्रावकजीवन को खड़ा करना है। गौतम द्वारा आनन्द श्रावक के अवधिज्ञान में संशय प्रकट करना यह बताता है कि श्रावक साधना के माध्यम से सर्वोत्कृष्ट सिद्धि प्राप्त नहीं हो सकती, किन्तु आनन्द ने इसे निराधार कर दिया और श्रमणों के समकक्ष श्रावकों को खड़ा होने का प्रमाण दिया। उपासना-रत श्रावक भी कठोर तपाराधना कर सकता है' और तपाराधना के साथ-साथ अनुकूल व प्रतिकूल उपसर्गों व परिषहों में विजय पा सकता है । कामदेव श्रावक ने देवकृत पिशाच रूप उपसर्ग आने पर भी अन्त तक दृढ़ता रखी।२ चुलनीपिता, सुरादेव, चुल्लशतक व सकडालपुत्र ने देवकृत उपसर्गों को सहा भी और स्खलित भी हुए किन्तु पुनः प्रायश्चित्त करके धर्माराधना में प्रवृत्त हुए । महाशतक श्रावक को स्वयं की पत्नी रेवती द्वारा कामभोगों में प्रवृत्त होने का निमंत्रण देना एवं विभिन्न कामोत्तेजक हाव-भावों द्वारा डिगाने की चेष्टा करने पर भी वह अपने व्रत में दृढ़ रहा। यह सब बातें कथानक की इस विशेषता की ओर संकेत करती है कि व्यक्ति परिवार में रहकर भी आत्म कल्याण कर सकता है। ३. विषयवस्तु का साहित्यिक स्वरूप-उपासकदशांगसूत्र में विषयवस्तु में सजीवता लाने के लिए अलंकारिक व चमत्कारिक शैली का प्रयोग किया गया है। कामदेव नामक दूसरे अध्याय में पिशाच, हाथी व सर्प का वर्णन है जिसमें कहा गया है कि पिशाच का सिर गाय को चारा देने की टोकरी जैसा था, आँखें मटकी जैसी थी, हाथों की अंगुलिया १. उवासकदसाओ-(सं०) मुनि मधुकर, १/७२ २. वही, २/१११ ३. वही, ८/२४६-२४७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002128
Book TitleUpasakdashanga aur uska Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Kothari
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1988
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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