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९. नन्दिनोपिता
महावीर के काल में श्रावस्ती नगर में नन्दिनीपिता नाम का एक गाथापति रहता था । उसके पास बारह करोड़ स्वर्ण मुद्राओं से युक्त सम्पत्ति थी । उसकी भार्या का नाम अश्विनी था । एक बार महावोर श्रावस्ती नगरी पधारे । नन्दिनीपिता ने महावीर के धर्मोपदेश से प्रभावित होकर गृहस्थ धर्म स्वीकार किया ।
उपासकदशांग : एक परिशीलन
नन्दिनी पिता ने श्रावक - व्रतों की साधना के द्वारा उत्तरोत्तर आत्मविकास कर बीस वर्ष तक श्रावक धर्म का पालन किया । अन्त में कुटुम्ब भार अपने ज्येष्ठ पुत्र को सौंपकर धर्माराधना में पूर्ण रूप से संलग्न हो गया और समाधि मरण से युक्त होकर अरुणगव विमान में उत्पन्न हुआ ।
१०. सालिहोपिता
स्थानागंसूत्र में इसका नाम लेकियापिता प्राप्त होता है ।"
श्रावस्ती में सालिहापिता नाम का धनाढ्य गाथापति रहता था । उसकी पत्नी का नाम फाल्गुनो था । उसके पास भी बारह करोड़ स्वर्ण मुद्राएं थी तथा चार गोकुल थे ।
महावीर के श्रावस्ती में पदार्पण पर उसने भो गृहस्थ धर्म स्वीकार कर लिया | चौदह वर्ष तक धर्माराधना के बाद अधिक धर्माराधना करने के उद्देश्य से अपने ज्येष्ठ पुत्र को घर का भार सौंप कर धर्मोपासना में लग गया । उपसर्ग उपस्थित नहीं होने से स्थिर चित्त हो समाधिमरण प्राप्त किया । वह अरुणकीय विमान में देव रूप में उत्पन्न हुआ ।
विषय-वस्तु को विशेषताएँ
उपासकदशांग की कथावस्तु का संक्षिप्त अवलोकन करने से उसमें कतिपय ऐसी विशेषताएँ दृष्टिगोचर होतो हैं जो उपासकदशांगसूत्र को अन्य सूत्रों से भिन्न रूप में प्रदर्शित करता है । ऐसी कुछ विशेषताएँ इस प्रकार हैं :
१. कथानक के चरित्रों को उत्थापना एवं विकास - उपासक दशांगसूत्र में विभिन्न उपासकों के चरित्रों का उदात्त वर्णन पाया जाता है । इसमें पुरुष व स्त्री दोनों प्रकार के चरित्र हैं । आनन्द व कामदेव जैसे श्रावक १. ठाणं - मुनि नथमल, पृष्ठ १००५
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