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उपासक दशांग की विषयवस्तु और विशेषताएँ
तप से भी तुम्हें क्या फल मिलेगा ? मेरे साथ चलो और जीवन को भोग कर तृप्त होओ।
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महाशतक द्वारा प्रतिमा ग्रहण - महाशतक ने इन बातों पर कोई ध्यान नहीं दिया और वह धर्माराधना में लगा रहा। बार-बार कहने पर भी महाशतक द्वारा मौन रहने पर निराश होकर रेवती वहां से चलो गयी । महाशतक अपना साधना क्रम तीव्र करते हुए क्रमशः ग्यारह प्रतिमाओं को ग्रहण किया ।
अवधिज्ञान - कठिन तपश्चर्या से महाशतक की आत्मा शुद्ध होती गयी, कर्म रज क्षीण होते गये और इस क्रम में महाशतक को अवधिज्ञान उत्पन्न हो गया ।
रेवती द्वारा पुनः उपसर्ग - अवधिज्ञान के बाद रेवती एक दिन पुनः वहां पर आयी और विषय वासना में रमण करने के लिए कहने लगी । जब बार-बार रेवती दुश्चेष्टा करने लगी तो महाशतक ने रेवती का भविष्य अवधिज्ञान से देखा और कहा- तू सात दिन में असाध्य पीड़ा पाती हुई मर जायगी और चौरासी हजार वर्ष की आयु-स्थिति वाली नरक में उत्पन्न होगी ।
रेवती का मरण व नरकोगमन - यह बात सुनकर भय से कांपती हुई रेवती घर गयी । अब मौत के खौफ से वह घबराने लगी और आखिर सात दिन के अन्दर अन्दर वह अलस रोग से पीड़ित होकर मर गयी एवं लोलुपच्युत नरक में जाकर उत्पन्न हुई ।
महावीर का आगमन व प्रायश्चित्त-संयोगवश भगवान महावोर राजगृह पधारे। उन्होंने गौतम से कहा कि महाशतक श्रावक से भूल हो गयी है । सल्लेखनायुक्त श्रावक को ऐसे सत्य वचनों को नहीं कहना चाहिए जो अप्रिय या दूसरों को कष्टदायक हो । अतः महाशतक को इसके लिए प्रायश्चित्त कराओ । गौतम इस बात को कहने महाशतक के पास आये और महावीर का सन्देश कहा। महाशतक ने उसे विनयपूर्वक स्वीकार कर प्रायश्चित्त किया। इसके बाद वह कठोर साधना से आत्मविकास करता गया एवं एक मास की सल्लेखना ग्रहण कर अरुणावतंसक विमान में देव रूप से उत्पन्न हुआ ।
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