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उपासकदशांग : एक परिशीलन शेष बारह से एक करोड़ स्वर्ण मुद्रा व एक गोकुल प्राप्त था। यह सम्पत्ति महाशतक की स्वयं की सम्पत्ति के अतिरिक्त थी। - महावीर द्वारा धर्मोपदेश-एक समय श्रमण महावीर राजगृह पधारे। महाशतक ने महावीर के उपदेश से प्रभावित होकर श्रावक के बारह व्रत ग्रहण किये तथा कांस्य सहित आठ-आठ करोड़ स्वर्ण मुद्राएं एवं तेरह पत्नियों को रखने की मर्यादा रखी। इस प्रकार वह श्रावक बनकर जीवाजीव का जानकर होकर विचरने लगा।
रेवती का कर विचार-महाशतक की मख्य पत्नी रेवती अत्यन्त धनाढ्य व विलासी प्रकृति की थी। उसके दिल में काम-भोग की तीव्र अभिलाषा बनी रहती थी। एक बार रात्रि में उसके मन में विचार आया कि मैं अपनी बारह सौतों की हत्या कर दूं, ताकि मैं एकमात्र सम्पत्ति की स्वामिनी बनकर स्वेच्छानुसार भोग भोग सकूँ । ___ कार्यरूप में परिणति-जहाँ चाह होती है वहां राह निकल जाती है । रेवती ने अपनी मंशा पूर्ण कर ही ली और आनन्दपूर्वक महाशतक के साथ भोग-भोगने लगी। इस तीव्र लालसा के कारण उसमें अनेक दुष्प्रवृत्तियां जन्म लेने लगी। वह मांस-मदिरा में लोलुप रहने लगी। एक समय ऐसा आया जब राजगृह में पशुओं की हिंसा नहीं करने को घोषणा हुई, जिससे रेवती को मांस उपलब्ध होना बन्द हो गया।
पितृगृह द्वारा विषयासक्ति को पूर्ति–'अमारि-प्रथा' लागू होने पर रेवती ने अपनी क्षुधा की पूर्ति के लिए पितृगृह के पुरुषों को बुलाकर कहा कि मेरे पितृगृह से दो बछड़े रोज मार कर लाया करो। ऐसा गुप्तरूप से होने लगा और वह विषयासक्ति में लिप्त होती गयी।
महाशतक की स्थिति-महाशतक निरन्तर धर्माराधना में लगा रहता था । व्रत नियमों का पालन करते हुए इस तरह चौदह वर्ष व्यतीत हो गये। महाशतक अपना कार्य ज्येष्ठ पुत्र को सौंपकर प्रौषधशाला में रहने लगा।
कामोद्दीप्त रेवती का प्रौषधशाला पहुँचना-एक दिन शराब के नशे में कामोद्दीप्त रेवतो महाशतक के पास प्रौषधशाला में पहुंची। आकर्षक शृंगार से युक्त हो वह कहने लगी कि तुम मुझे छोड़कर यहां तप कर रहे हो । इस
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