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उपासकदशांग की विषयवस्तु और विशेषताएँ ४३ था और तुम तो उसी को मानते हो । किन्तु यदि तुम कहो कि प्रयत्नपूर्वक उद्यम से ऐसा होता है तो तुम्हारा नियतिवाद मिथ्या है, गलत है।
भद्र प्रकृति का सकडालपुत्र वास्तविकता को समझ कर पुरुषार्थ में विश्वास करने लगा। उसने भगवान से गृहस्थ धर्म को स्वीकार कर लिया, साथ ही अपनी पत्नी अग्निमित्रा को भी श्राविका-धर्म ग्रहण करने की प्रेरणा दी।
गोशालक का आगमन व उपेक्षा-गोशालक ने जब यह सुना तो वह पोलासपूर आकर सकडालपूत्र से मिला । सकडालपुत्र से आदरसत्कार नहीं पाकर उसने एक युक्ति निकाली। उसने महावीर की गुणस्तुति चालू कर दी, जिसे सकडालपूत्र नहीं समझ सका और शिष्टतावश अनुरोध किया कि आप मेरे से आवश्यक वस्तुएं ग्रहण करें । समय-समय पर गोशालक ने उसे बदलने के अनेक प्रयास किये पर हर बार सकडालपुत्र ने विवेकयुक्त होकर उसे निरुत्तर कर दिया । हताश हो, गोशालक वहां से विहार कर गया।
उपसर्ग-इस तरह धर्माराधना करते हुए पन्द्रहवें वर्ष की एक रात्रि में उपसर्ग देने की नियत से सकडालपुत्र को एक देव ने आकर कहा-तू व्रत छोड़ दे, नहीं तो तेरे तीनों पुत्रों को मार दूंगा। इस धमकी पर विचलित नहीं होता देख उसने उन्हें मार-मार कर उनके रुधिर के छीटे सकडालपुत्र के शरीर पर दिये । फिर भी सकडालपुत्र शान्त रहा। अब देव ने उसकी पत्नी अग्निमित्रा को मार डालने की धमकी दो । तब सकडालपुत्र ने इसे पकड़ लेने की सोची, देव माया में कौन किसे पकड़ता ? खम्भा हाथ में पकड़ कर वह जोर-जोर से चिल्लाने लगा, तब अग्निमित्रा ने आकर उसे पूनः धर्म में स्थिर किया। अंतिम समय के एक मास की सल्लेखना से समाधिमरण प्राप्त किया और अरुणभूत विमान में देव रूप में उत्पन्न हआ। ८. महाशतक __ महावीर के समय में राजगृह नामक नगर था। राजगृह के बाहर गुणशील चैत्य था। उस समय नगर में महाशतक नाम का गाथापति रहता था। उसके पास कांस्य सहित आठ करोड़ स्वर्ण घर के कोष में, आठ करोड़ व्यापार में व आठ करोड़ घर के वैभव में लगे हुए थे। उसके पास आठ गोकुल थे।
उसके रेवती आदि तेरह पत्नियां थीं। वे सभी सम्पन्न व धनाढ्य थीं। रेवती के पितृकुल से आठ करोड़ स्वर्ण मुद्रा एवं आठ गोकुल प्राप्त हुए थे।
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