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________________ उपासकदशांग की विषयवस्तु और विशेषताएँ ३७ के हिसाब से आठ गोकुल थे। इस प्रकार चुलनीपिता अत्यन्त समृद्ध व वैभवशाली था। महावीर का आगमन व निवृत्ति-एक बार भगवान महावीर का वाराणसी में पधारना हुआ तो चुलनोपिता ने भी धर्मोपदेश सुना और विरक्त होकर उसने भी श्रावक-धर्म स्वीकार कर लिया। वह प्रौषधशाला में प्रौषध को स्वीकार करके धर्माराधना करने लगा। उपसर्ग एव निवारण-साधना के दौरान मध्य रात्रि को जब चुलनीपिता धर्माराधना में लीन था, तब एक देव प्रकट हुआ और पीड़ा पहुँचाने के उददेश्य से उसने कहा कि अरे चुलनीपिता! यदि तूने व्रत भंग नहीं किया तो तेरे बड़े लड़के को लाकर उसके टुकड़े-टुकड़े कर दूँगा, उसे तेल को कड़ाही में पकाउंगा व उसके खून से तुम्हें छींटे दूंगा। जिससे तुम दुःखी होकर मर जाओगे। दो-तीन बार इसी प्रकार कहने पर भी जब चुलनीपिता ध्यानस्थ रहा तब देव ने जैसा कहा वैसा किया, परन्तु चुलनीपिता ने उसे शांत भाव से सहन किया। इस पर क्रद्ध होकर देव ने उसके दूसरे व तीसरे पुत्र को भी इसी प्रकार मार डाला, तब भी चुलनीपिता शान्त चित्त रहा। माता के वध की धमको-तीनों पुत्रों की हत्या के बाद देव ने कहा कि अरे चुलनीपिता ! यदि अब तू अपने व्रत को नहीं छोड़ेगा तो तेरी माता भद्रा सार्थवाही को यहाँ लाकर तेज तलवार से टुकड़े-टुकड़े कर दूंगा और उनका खून भी तेरे शरीर पर छितराऊंगा। व्रत को स्खलना-माँ, जो पूज्य व वन्दनीय होती है उसके सम्बन्ध में ऐसा सुनकर चुलनीपिता ने सोचा कि देवता समान मेरी माँ को यह मारना चाहता है अतः मैं इसे पकड़ लूँ। यह सोचकर वह उठा और देव को पकड़ने का प्रयत्न किया तो उसके हाथ में खंभा आ गया और वह जोर-जोर से चिल्लाने लगा। चुलनीपिता द्वारा चिल्लाने की आवाज सुनकर उसकी माता ने आकर पूछा कि तुम इस तरह से क्यों चिल्ला रहे हो? व्रतों में पुनः स्थिर होना-चुलनीपिता द्वारा पूर्व का वृत्तान्त कहने पर भद्रा माता ने समझाया कि तुम्हारे पुत्रों को कोई नहीं लाया है और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002128
Book TitleUpasakdashanga aur uska Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Kothari
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1988
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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