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________________ उपासकदशांग : एक परिशीलन इस तरह उपसर्ग को समाप्त समझकर कामदेव श्रावक ने अभिग्रह - का पारणा किया । ३६ भगवान के दर्शन - उस समय शुभ संयोग से भगवान महावीर चम्पानगरी के बाहर उद्यान में ठहरे हुए थे । कामदेव श्रावक के हृदय में भगवान के दर्शन करने की इच्छा हुई और वह भी प्रौषधशाला से निकलकर पूर्णभद्र चैत्य में पहुँचा, वहाँ भगवान के दर्शन किये तथा उपदेश श्रवण कर वह तुष्ट हुआ । महावीर द्वारा कामदेव की प्रशंसा - उपदेश के बाद श्रमण भगवान महावीर ने कामदेव श्रमणोपासक से पूछा - हे कामदेव ! मध्य रात्रि में एक देव द्वारा तुम्हें पिशाच, हाथी व सर्प द्वारा शिलादि व्रतों को छोड़ने के लिए उपसर्ग दिये थे और तुम्हारे द्वारा विचलित नहीं होने पर वह वापस लौट गया, क्या यह सही है ? कामदेव ने इसे विनय पूर्वक स्वीकार किया । महावीर ने समस्त साधु-साध्वियों को कहा -- एक श्रमणोपासक होते हुए कामदेव धर्माराधना करने में इतनी दृढ़ता रख सकता है, अतः आपको भी ऐसी दृढ़ता रखनी चाहिए। तत्पश्चात् कामदेव भगवान को वन्दन- नमस्कार करके वापस लौट आया । प्रतिमा ग्रहण व देवलोक गमन - - अब कामदेव श्रावक में आत्मकल्याण की भावना तीव्र से तीव्रतर होने लगी । उसने श्रावक प्रतिमा व्रत स्वीकार कर लिया । २० वर्ष तक श्रावक-पर्याय पालते हुए एवं ग्यारह उपासक प्रतिमाओं को ग्रहण करते हुए उसने मासिक सल्लेखना धारण कर समाधिपूर्वक मृत्यु का वरण किया । अरुणाभ विमान में देव रूप में उत्पन्न हुआ, जहाँ उसकी आयु चार पल्योपम की बताई गयी है । ३. चुलनोपिता महावीर के काल में वाराणसी नाम की नगरी थी। वहां कोष्ठक नामक चैत्य था । उस वाराणसी में चुलनीपिता नामका गाथापति निवास करता था । उसकी पत्नी का नाम श्यामा था। उसके पास अपार धन-सम्पत्ति थी । आठ करोड़ कोष में, आठ करोड़ व्यापार में और आठ करोड़ मुद्राएँ घर के वैभव में लगी हुई थीं । अर्थात् उसकी सम्पत्ति आनन्द व कामदेव की अपेक्षा भी अधिक थी। उसके पास दस हजार गायों के प्रत्येक गोकुल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002128
Book TitleUpasakdashanga aur uska Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Kothari
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1988
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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