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उपासकदशांग की विषयवस्तु और विशेषताएं हाथो का उपसर्ग
खिन्न व हताश होकर मिथ्यादष्टिदेव ने प्रोषधशाला के बाहर आकर कामदेव को और अधिक कष्ट देने की सोची। अब उसने अपने वेक्रिय शरीर से हाथी का रूप ग्रहण किया। वह हाथी अत्यन्त विशाल, उन्मत्त व डरावना था। भयानक आवाज करता हुआ वह हाथी कामदेव श्रावक के पास आया और बोला अरे कामदेव ! अगर अब भी तू अपने व्रतों को खण्डित नहीं करेगा । तो मैं तुझे सूंड में पकड़ कर प्रौषधशाला के बाहर ले जाऊँगा और तुझे आकाश में उछाल कर इन तीक्ष्ण दांतों पर झेलूंगा। जमीन पर पटक कर पैरों से रोदूंगा जिससे तू अकाल में ही काल के गाल में चला जायेगा । यह कह कर उसने कामदेव को जैसा कहा वैसा ही कर दिखाया। कामदेव इस पर भी शान्तिपूर्वक धर्माराधना में लगा रहा और असह्य वेदना को समभाव से सहन करता रहा।
सर्प का उपसर्ग-दो भयंकर उपसर्गों से भी विचलित नहीं होने से देव को अत्यन्त क्रोध आया। वह प्रौषधशाला के बाहर आया और कामदेव को और अधिक कष्ट देने के उद्देश्य से उसने विकराल सर्प का रूप धारण किया। यह सर्प उग्र विष, चंड विष व घोर विष वाला तथा अत्यन्त काला व भयंकर क्रोध से भरा हुआ था। कामदेव के पास पहुंच कर वह बोला-अरे कामदेव श्रावक! यदि तूने अब भो इन व्रतों को नहीं छोड़ा तो मैं अभी तेरे शरीर पर चढंगा और तुझे जगह-जगह डसँगा, जिससे तू दुःखी होकर मर जायगा। ऐसा कहकर उसने अपने कथन को वास्तविक रूप में कर दिखाया । किन्तु कामदेव श्रावक किंचित्मात्र भी विचलित नहीं हुआ।
देव द्वारा प्रशंसा व क्षमायाचना-परीक्षा को विभिन्न कसौटियों से गुजरने के बाद भी विचलित नहीं होने पर देव ने सोचा यह वास्तव में शूरवीर और दृढ़प्रतिज्ञ वाला है। इस प्रकार सोचकर देव अपने वास्तविक रूप में आकर कामदेव से कहने लगा कि हे कामदेव श्रावक ! तुम 'धन्य हो, तुम्हारी निर्ग्रन्थ धर्म के प्रति श्रद्धा दढ़ है, देवराज शक्र की बात पर विश्वास नहीं करके मैंने आपकी परीक्षा की, अतः आप मुझे क्षमा करें। इस प्रकार कहकर देव जिधर से आया उधर ही वापस लौट गया।
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