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उपासकदशांग : एक परिशीलन
ऐश्वर्य - कामदेव के पास आनन्द श्रावक से भी अधिक सम्पत्ति थी । . उसके पास छ: करोड़ हिरण्य कोष में, छः करोड़ व्यापार में व छ: करोड़ घर के वैभव में लगे हुए थे । कामदेव के पास छः व्रज थे । प्रत्येक व्रज में दस हजार गायें थीं। इस प्रकार कामदेव के पास लौकिक साधनों का प्रचुर भण्डार था ।
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धर्माराधना की ओर - आनन्द की तरह ही कामदेव के जीवन में भी नया मोड़ तब आया जब श्रमण भगवान महावीर विचरण करते हुए चम्पानगरी पधारे | आनन्द की तरह कामदेव भी भगवान महावोर के दर्शनार्थं गया, वहाँ उसने भी धर्मोपदेश सुना और उनके धर्मोपदेश से प्रभावित होकर उसने गृहस्थ धर्मरूप बारह व्रत ग्रहण किये ।
कठोर तपाराधना- किसी समय कामदेव ने भी सोचा कि मुझे अब पूर्ण रूप से धर्माराधना करनी चाहिए, इसलिए सब दायित्व अपने ज्येष्ठ पुत्र को सौंपकर वह पौषधशाला में जाकर अपना समय धर्माराधना में व्यतीत करने लगा ।
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उपसर्ग - धर्माराधना करते हुए एक दिन कामदेव के जीवन में एक उपसर्गं आया । पौषधशाला में मध्यरात्रि में एक मायावी और मिथ्यादृष्टि देव उपस्थित हुआ । उसने कामदेव को डराया धमकाया व विभिन्न प्रकार के उपसर्ग उपस्थित किये। उसने एक अत्यन्त विशालकाय विकराल पिशाच का रूप बनाया, जिसका प्रत्येक अंग बड़ा ही भयावह था । उसने तीक्ष्ण खड्ग हाथ में ले रखा था और भयानक शब्द करता हुआ कामदेव के पास आया और कहने लगा- अरे कामदेव ! तू मौत की इच्छा कर रहा है, और यहाँ पौषधशाला में बैठा है, किन्तु आज यदि तू प्रौषधोपवास को नहीं छोड़ेगा, तो इस तलवार के द्वारा तेरे टुकड़े-टुकड़े कर दूंगा और तू अकाल मौत मर जायगा । इस प्रकार एक, दो, तीन बार कहने पर भी कामदेव के मन में किचित् मात्र भी घबराहट या दुर्भा वना नहीं आयी, वह अपने आत्मचिन्तन में स्थिर रूप से लगा रहा। तब अत्यन्त क्रुद्ध होकर पिशाच ने सचमुच ही उस तीक्ष्ण खड्ग से कामदेव के शरीर पर प्रहार किये। ऐसी अति दारुण वेदना पाकर भी कामदेव अविचल व शान्त चित्त रहा ।
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