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________________ ३३ उपासकदशांग की विषयवस्तु और विशेषताएं में भी पूर्व की ओर लवणसमुद्र में पांच सौ योजन व अधोलोक में नरक (लोलुपाच्युत) तक देखने लगा हूँ। - यह सुनते ही गौतम बोले-आनन्द ! गृहस्थ को अवधिज्ञान तो हो सकता है, परन्तु इतना विशाल नहीं जैसा तुम बता रहे हो, इसलिए मिथ्या भाषण के लिए तुम्हें प्रायश्चित्त करना चाहिए। आनन्द श्रावक कहने लगा-भगवन् ! क्या जिन प्रवचन में सत्य, तथ्य और सारभूत बातों के लिए भी आलोचना की जाती है ? गौतम ने कहा-ऐसा नहीं होता। तब आनन्द श्रावक बोला-यदि जिन प्रवचन में सत्य की आलोचना नहीं होती है, तो आप स्वयं आलोचना कीजिये, क्योंकि आप सत्य को नकार अनोखी क्षमा-याचना-गौतम यह सुनकर विचार में पड़ गये और मन में अनेक शंकाएं लेकर महावीर स्वामी के पास पहुँचे । वन्दना कर आहार-पानी दिखाकर पूर्वोक्त सभी घटनाएं उन्हें बताई एवं कहा-अन्त में शंकाशील होकर मैं आपके पास आया है। इस पर भगवान बोले-गौतम! तुम ही असत्य रूप पाप के भागी हो, अतः तुम ही आलोचना करो और आनन्द श्रावक से इस सम्बन्ध में क्षमा-याचना करो। गौतम ने इसे विनयपूर्वक स्वीकार किया और प्रायश्चित्त रूप में आनन्द श्रावक से क्षमा याचना की, यह उनके उदात्त-चरित्र को प्रकट करती है। आनन्द के जीवन का उपसंहार-इस प्रकार आनन्द श्रावक सभी व्रतों, प्रतिमाओं को पालन करता हुआ एक मास की सल्लेखना कर समाधिमरण को प्राप्त हुआ। मरकर वह सौधर्म देवलोक के सौधर्मावतंसक महाविमान के ईशाणकोण में स्थित अरुण विमान में देवरूप में उत्पन्न हुआ, जहां उसकी आयु चार पल्योपम बताई गयी है। २. कामदेव धावक भगवान महावीर के समय में चम्पा नाम की नगरी थी। वहाँ कामदेव नामक गाथापति निवास करता था। उसकी पत्नी का नाम . भद्रा था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002128
Book TitleUpasakdashanga aur uska Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Kothari
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1988
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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