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उपासक दशांग : एक परिशीलन
आनन्द ने कहा कि मुझे अब कोई किसी भी कार्य के बारे में नहीं पूछे, नहीं परामर्श करे और नहीं मेरे लिए अशन, पान तैयार करे । इस प्रकार निर्देश देकर आनन्द श्रावक निरारम्भ भोजन पर रहने लगा ।
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आनन्द श्रावक द्वारा प्रतिमा ग्रहण
कोल्लाक- सन्निवेश में स्थित पोषधशाला में धर्माराधना करते हुए आनन्द क्रमशः दर्शन प्रतिमा, व्रत प्रतिमा, सामायिक प्रतिमा, पौषध प्रतिमा, कायोत्सर्ग प्रतिमा, ब्रह्मचर्यं प्रतिमा, सचित्ताहारवर्जनप्रतिमा, स्वयं आरम्भ-वर्जनप्रतिमा, भृतक प्रेष्यारंभवजंनप्रतिमा, उदिष्ठभक्तवर्जन प्रतिमा, श्रमणभूतप्रतिमा की आराधना करने लगा । इस प्रकार दीर्घकाल तक तपश्चरण व साधना से उसका शरीर कृश हो गया एवं उसकी नसें दिखाई पड़ने लगीं ।
कठोर तपाराधना - इस प्रकार कठोर तप करते हुए एक दिन आनन्द श्रावक ने सोचा कि मुझे इससे भी कठोर आराधना करनी चाहिए, इसलिए उसने विचार किया कि मैं अभी भगवान महावीर के पास जाकर मारणान्तिक संल्लेखणा स्वीकार कर लूं, भोजन पानी का पूर्ण त्याग कर शान्त-चित्त से मृत्यु का वरण करूँ । संयोग ही था कि भगवान उस समय वहीं पर विचरण कर रहे थे, इसलिए उसने सबेरे ही भगवान के पास जाकर आमरण अनशन स्वीकार कर लिया । जीवन भरण, यशकीर्ति, ऐहिक भोग तथा सुख आदि इच्छाओं से निवृत होकर अपना समय व्यतीत करने लगा ।
अवधिज्ञान व गौतम की शंका-कुछ समय व्यतीत होने पर एक दिन शुभ ध्याग में लीन व धर्म के गम्भीर चिन्तन से अवधिज्ञानावरणीय कर्मों के क्षयोपशम होने से आनन्द श्रावक को अवधिज्ञान उत्पन्न हो गया । ग्रामानुग्राम विचरते हुए श्रमण महावीर वापस वाणिज्यग्राम में पधारे। उनके प्रमुख शिष्य गौतम बेले- बेले तपस्या कर रहे थे । एक दिन वह बेले के पारणे की भिक्षा लेने नगर में पधारे और आनन्द श्रावक के अनशन के बारे में सुनने पर पौषधशाला में दर्शन देने पहुँचे । आनन्द श्रावक कमजोरी के कारण समर्थ नहीं होने से गौतम को समीप बुलाकर वन्दना की और पूछा - भगवन् ! क्या गृहस्थ को अवधिज्ञान हो सकता है, गौतम के 'हाँ' कहने पर आनन्द श्रावक ने कहा - तो मुझे भी वह ज्ञान हो गया है और
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