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________________ उपासकदशांग को विषयवस्तु और विशेषताएँ ३१ इन्हीं के साथ श्रावक को नहीं करने योग्य पन्द्रह कर्मादानों अर्थात् निषिद्ध-व्यवसायों की भी जानकारी दी और आनन्द ने उन्हें नहीं करने की प्रतीज्ञा की । इन व्रतों को ग्रहण करने के बाद गाथापति आनन्द अंब आनन्द श्रावक के रूप में प्रसिद्धि पाने लगा। शिवानन्दा को प्रतिबोध - आनन्द ने श्रावक व्रत ग्रहण करने के पश्चात् श्रमण महावीर को तीन बार वन्दन कर अपने घर पहँचा और अपनी पत्नी के बारे में सोचा-जैसा मैंने उत्तम मार्ग अपनाया है, क्या ही अच्छा हो कि मेरी पत्नी भी ऐसा ही करे। इस प्रकार विचार कर उसने अपनी पत्नी से कहा कि आज मैंने भगवान महावीर के दर्शन करके उनसे श्रावक-व्रत -ग्रहण किये हैं। अतः तुम भी भगवान महावीर के पास जाकर उपदेश श्रवण करो तथा सम्भव हो तो गृही धर्म स्वीकार करो। शिवानन्दा को आनन्द श्रावक का कथन उत्तम और रुचिकर लगा। वह भी भगवान ने दर्शनार्थ पहुंची और धर्मदेशना सुनकर विरक्त हो, उसने भी यथाविधि श्राविका-धर्म स्वीकार कर लिया। इस प्रकार आनन्द व शिवानन्दा ने गृहस्थ धर्म के बारह व्रतों को ग्रहण किया इसके अनन्तर भगवान महावीर का वहाँ से विहार हो गया। सामाजिक दायित्व से मुक्ति-इस प्रकार आनन्द व शिवानन्दा श्रावकश्राविका के धर्म का परिपालन करते हुए अपना जीवन व्यतीत करने लगे। इस तरह चौदह वर्ष समाप्त हो गये। पन्द्रहवें वर्ष में एक दिन पूर्व रात्रि में धर्मध्यान करते हुए आनन्द श्रावक के मन में यह संकल्प हुआ कि मैं इस नगर के अनेक लोगों द्वारा सम्मानित हूँ तथा उनके सुख-दुःख में भी हिस्सा लेता हूँ, इस कारण मैं धार्मिक कार्य में पूरा समय नहीं दे पाता हूँ, अतः कल सभी पारिवारिक जनों, रिश्तेदारों व मित्रगणों को बुलाकर एक प्रीतिभोज ,, और कुटुम्ब का भार ज्येष्ठ पुत्र को सौंपकर पौषधशाला में धर्माराधना करू । इस संकल्प के साथ ही दूसरे दिन सभी मित्रजन व पारिवारिक सदस्यों को बुला कर आदर-सम्मान से भोजन कराकर कहा कि मैं आप सभी का आधारभूत होने के कारण धर्म का सम्यक् परिपालन . नहीं कर पाता हैं अतः मैं ज्येष्ठ पुत्र को कुटुम्ब का भार सौंपकर धर्माचरण करना चाहता हूँ। सबकी सहमति के बाद ज्येष्ठ पुत्र को भार सौंपकर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002128
Book TitleUpasakdashanga aur uska Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Kothari
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1988
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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