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उपासकदशांग : एक परिशीलन होता हुआ दुतिपलाश चैत्य में आया। महावीर को तीन बार प्रदक्षिणा कर विधिपूर्वक वन्दना एवं नमस्कार की ।
महावीर को धर्मदेशना-भगवान महावीर ने उपस्थित जन समूह को उपदेश दिया और श्रमण धर्म एवं श्रावक धर्म को व्याख्या की।
आनन्द को मनोभावना-भगवान का उद्बोधन सुनकर आनन्द के मन में अत्यन्त हर्ष हुआ और जिन धर्म के प्रति गहरो श्रद्धा उत्पन्न हुई। वह भगवान के समक्ष उपस्थित हुआ और कहने लगा, हे भगवन् ! आपने जो उपदेश दिया, वह सत्य है, और मैं उसे पूर्ण रूप से अंगीकार करना चाहता हूँ, परन्तु परिस्थितियों के कारण मैं उस पूर्ण त्याग में असमर्थ हूँ, अतः मैं आपके पास से गृहस्थ धर्म रूप बारह व्रतों को स्वीकार करना चाहता हूँ। भगवान ने कहा-हे देवानुप्रिय ! जैसा सुखदायक हो वैसा ही करो।
आनन्द द्वारा व्रत ग्रहण-इस प्रकार आनन्द ने भगवान महावीर द्वारा स्थूल प्राणातिपात, मृषावाद, अदत्तादान, स्वदार संतोष, इच्छा परिमाण, उपभोग परिभोग, अनर्थदण्ड विरमण, सामायिक, देशावकाशिक, पौषधोपवास व अतिथिसंविभाग आदि बारह व्रत ग्रहण किये, अपने ऐश्वर्यपूर्ण जीवन को मर्यादित बनाया तथा विस्तृत व्यापार, धन आदि को तृष्णा को नियन्त्रित किया।
सातवें उपभोग-परिभोग व्रत में आनन्द ने शरीर पोछने के अंगोछे, दन्त धावन, फल, मालिश में काम में आने वाले तेल, उबटन, स्नान के जल, पहनने के वस्त्र, लेप करने वाली वस्तु, पुष्प, आभूषण, भोजन, पकवान, चावल, दाल, घृत, शाक, माधुरक, व्यंजन, पानी, मुखवास-विधि का परिमाण किया और अन्य सभी वस्तुओं का परित्याग कर दिया।
इन व्रतों को ग्रहण करने के साथ-साथ आनन्द ने इनमें दोष लगने की क्या-क्या सम्भावनाएं हो सकती हैं, उनको भी जानकारी प्राप्त को । प्रत्येक व्रत के भंग होने को चार सोढ़ियाँ होती हैं- अतिक्रम, व्यतिक्रम, अतिचार और अनाचार। इनमें से अतिचार का अर्थ व्रत का आंशिक भंग है। प्रत्येक व्रत के भगवान ने पाँच-पाँच अतिचारों का भी ज्ञान आनन्द को कराया।
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