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उपासकदशांग की विषयवस्तु और विशेषताएँ २९ आनन्द के पास चार व्रज थे (१० हजार गायों के समूह को एक व्रज कहते हैं ) उसके इन चारों व्रजों में गाय, भैंस, घोड़े आदि सभी पशुओं को सम्मिलित किया गया है ।
सामाजिक जीवन-आनन्द का समाज में अग्रगण्य व्यक्तियों में स्थान था। सभी वर्ग के लोगों द्वारा उसे सम्मान मिलता था। वह अत्यन्त बुद्धिमान, मिलनसार व परामर्श लेने योग्य होने से नगर के राजा, मंत्री, सार्थवाह आदि व्यक्ति भी विविध कार्यों में, मंत्रणाओं में, कौटुम्बिक व्यवधानों में, दोष लगने पर अनेक गुप्त रहस्यों व भेदों में उसकी सलाह लिया करते थे, स्वयं अपने परिवार के लिए वह केन्द्र-बिन्दु था। उसी को आगे रखकर कौटुम्बिक अपना कार्य सम्पन्न करते थे। उपासकदशांग में कहा गया है
___ " x x x मेढी जावसव्वकज्जवड्ढावए या वि होत्था"'
पारिवारिक जीवन-आनन्द के शिवानन्दा नाम की सर्वांग सुन्दर एवं स्वस्थ पत्नी थी। पति-पत्नी शब्द, रूप, रस, गंध व स्पर्शादि पांचों ही भोगों को भोगते हुए अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे । आनन्द के पारिवारिक सम्बन्धी भी सुखी व ऐश्वर्य सम्पन्न थे। इनके लिए मूल ग्रन्थ में “अड्ढे जाव अपरिभूए"२ वाक्य प्रयुक्त हुआ है ।
महावीर का सौजन्य-आनन्द अपने परिवार व सम्बन्धियों के मध्य आराम से जीवन व्यतीत कर रहा था, तदनन्तर उसके मनोविचारों को अलग ही दिशा प्रदान करने वाली एक घटना घटित हुई। संयोगवश श्रमण भगवान महावीर ग्रामानुग्राम भ्रमण करते हुए वाणिज्य-ग्राम में पधारे और वहाँ गाँव के बाहर बगीचे में बिराजे। इस समाचार के सुनते ही राजा जितशत्रु अपने श्रीमन्तों व सामन्तों के साथ भगवान के दर्शनार्थ आया, उसके साथ ही गाँव के अनेक संभ्रान्त, प्रतिष्ठित एवं आम नागरिक भी भगवान के दर्शनार्थ पहँचे। सभी नागरिकों को जाते देख आनन्द के मन में विचार हुआ कि मुझे भी भगवान के दर्शनार्थ जाकर धर्मोपदेश सुनना चाहिए, जिससे पुण्य फल की प्राप्ति हो। ऐसा विचार कर आनन्द ने स्नान कर, उपासना योग्य वस्त्र पहनकर पैदल ही वाणिज्यग्राम के मध्य १. उपासकदशांश-सूत्र (सं०) मुनि आत्माराम, पृष्ठ १० सूत्र ५ २. ईपासकदशांग सूत्र (सं०) मुनि आत्माराम, पृष्ठ १५ सूत्र ८
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